घने कोहरे के बाद यूपी क्रिकेट के लिए निकली चमकदार धूप

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-यूपी की जूनियर टीमों ने दिलाई राहत, सीनियर सीजन के अंत में लय में आए

कानपुर। उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (यूपीसीए) के लिए कुछ खास दिन चल रहे हैं। पहले गर्ल्स अंडर-19 टीम 14 सालों के बाद वन डे की चैम्पियन बनी, फिर रणजी ट्रॉफी में यूपी को बिहार के खिलाफ सीजन की पहली सीधी जीत हासिल हुई और अब अंडर-16 विजय मर्चेन्ट ट्रॉफी में पंजाब पर पहली पारी में बढ़त लेकर यूपी टीम ने एक और टूर्नामेंट पर अपनी मुहर लगाई। सीके नायडू की टीम में अच्छा खेल रही है। लेकिन सीनियर टीम सीजन के अंत में तब लय में आती नजर आई जब उसके लिए संभावनाओं की कोई गुंजाइश नहीं बची है।

सूरत (गुजरात) के लालभाई कान्ट्रैक्टर स्टेडियम में खेले गए पंजाब के खिलाफ खेले गए फाइनल में यूपी टीम को पहली पारी में 16 रनों की जो मामूली बढ़त मिली थी, मुकाबले के चौथे व अंतिम दिन ड्रॉ रहे मुकाबले में वही यूपी को खिताब दिला गई। इस मुकाबले में यूपी ने पहली पारी में 380 रन बनाए थे, जबकि पंजाब की टीम 364 रन बनाकर आउट हो गई थी। दोनों टीमों की पहली पारियां खत्म होने पर ही यह लगभग सुनिश्चत हो गया था कि यूपी टीम की झोली में एक ट्रॉफी और आने वाली है।

चौथे व अंतिम दिन जब कोई नतीजा निकलते न देख दोनों अम्पायरों द्वारा मैच को ड्रॉ घोषित किया गया, उस समय तक यूपी ने अपनी दूसरी पारी में तीन विकेट पर 179 रन बनाए थे। यूपी के शांतनु सिंह को प्लेयर ऑफ द मैच व सीरीज घोषित किया गया। इस मैच की दोनों पारियों में शांतनु ने अर्द्धशतक जड़ा था। पहली पारी में उसने टीम के लिए बेशकीमती 85 व दूसरी में 54 रन बनाए थे।

जैसे ही यूपीसीए पदाधिकारियों को विजय मर्चेंट में यूपी के हाथ ट्रॉफी लगने की संभावनाएं दिखीं, तुरंत ही उसके दो क्रिकेट के सबसे ‘जानकार’ पदाधिकारी सचिव और संयुक्त सचिव फ्लाइट पकड़कर विजेता टीम की पीठ थपथपाने और फोटो सेशन में शामिल होने के लिए सूरत शहर पहुंच गए। इनका हक भी बनता था क्योंकि इनकी कड़ी मेहनत का ही तो नतीजा थी यह ट्रॉफी। काश! खराब प्रदर्शन के समय भी ये इतनी ही तत्परता से हताश खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाने पहुंचा करें तो यूपी की टीमें अगले मैच के लिए अच्छा प्रदर्शन करने को प्रेरित तो हो सकें।

यह कहना गलत न होगा कि ट्रॉफियों का सूखा झेलने वाले यूपीसीए के लिए ये सफलताएं तपते रेगिस्तान में पड़ी बारिश की ठंडी फुहारों जैसा महसूस कराने वाली ही हैं, क्योंकि अभी तक उसकी चयन समितियां लगातार आलोचकों के निशाने पर ही रही थीं। इन दो खिताबी सफलताओं ने यूपी क्रिकेट को कुछ हद तक जरूर राहत पहुंचाई होगी। यूपीसीए ने हालांकि ट्रॉफी दिलाने वाली अपनी दोनों टीमों को पुरुस्कार राशि देने में दरियादिली नहीं दिखाई और सिर्फ 10-10 लाख रुपए ही देने की घोषणा की।

यूपी को दो दिन पहले ही रणजी ट्रॉफी में ग्रुप सी के मुकाबले में बिहार के खिलाफ उसी की जमीन पर पारी व 119 रनों से शानदार जीत मिली थी। लेकिन इस जीत से उसके टूर्नामेंट में स्थिति पर कोई असर नहीं पड़ा, क्योंकि पहले चरण के खराब प्रदर्शन ने उसकी पहले ही टूर्नामेंट से विदाई करवा दी थी। घरेलू क्रिकेट के इतिहास में यूपी की सीनियर टीम किसी भी फॉर्मेट में अभी तक खास सफलता हासिल नहीं कर सकी है।

गौरतलब है कि सीनियर टीम के नाम अब तक गिनी चुनी ट्रॉफियां ही हैं, जिनमें एक रणजी ट्रॉफी (2005-06), एक विजय हजारे ट्रॉफी (2002-03) और मुश्ताक अली ट्रॉफी (2015-16), जबकि एक निसार ट्रॉफी जो कि उसने (2006-07) धर्मशाला में पाकिस्तान की टीम सियालकोट के खिलाफ जीती थी। रणजी में पांच बार फाइनल तक जरूर पहुंची लेकिन सफलता सिर्फ एक बार ही हाथ लगी।

सबसे पहले यूनाइटेड प्राविंस के नाम से खेलने वाली टीम ने 1939-40 में रणजी के फाइनल में प्रवेश किया था। इसके बाद 1977-78, 1997-98, 2007-08 और 2008-09 में यूपी टीम ने फाइनल खेला। एक फाइनल मुश्ताक अली ट्रॉफी में 2013-14 में भी खेला था लेकिन जीत हाथ नहीं लग पाई थी।

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