-यह संन्यास क्यों? अश्विन ने अपने अंतिम 11 टेस्ट में लिए थे 47 विकेट, फिर अचानक क्यों इतना मजबूर हुआ टीम इंडिया का महान स्पिनर
संजीव मिश्र
रविचन्द्रन अश्विन का मीडिया के सामने आना और अचानक यह कह कर संन्यास ले लेना कि माफ कीजिएगा मैं आपके सवाल नहीं ले पाऊंगा, बहुत सारे सवाल छोड़ गया है। अचानक दुष्यंत कुमार की वे पंक्तियां दिमाग में कौंध गईं जो अश्विन के कॅरिअर को नजदीक से देखने वालों को भी लगेंगी कि शायद आज उन्हीं का हाल बयां कर रही हैं। दुष्यंत कुमार जी ने इसे किसी और सन्दर्भ में लिखा होगा लेकिन गुजारिश है कि इन्हें भारतीय क्रिकेट टीम और अश्विन की उसमें भूमिका के तौर पर पढ़ा जाए –
ये धुएँ का एक घेरा कि मैं जिसमें रह रहा हूँ
मुझे किस क़दर नया है, मैं जो दर्द सह रहा हूँ
ये ज़मीन तप रही थी ये मकान तप रहे थे
तेरा इंतज़ार था जो मैं इसी जगह रहा हूँ
मैं ठिठक गया था लेकिन तेरे साथ—साथ था मैं
तू अगर नदी हुई तो मैं तेरी सतह रहा हूँ
तेरे सर पे धूप आई तो दरख़्त बन गया मैं
तेरी ज़िन्दगी में अक्सर मैं कोई वजह रहा हूँ
कभी दिल में आरज़ू—सा, कभी मुँह में बद्दुआ—सा
मुझे जिस तरह भी चाहा, मैं उसी तरह रहा हूँ
मेरे दिल पे हाथ रक्खो, मेरी बेबसी को समझो
मैं इधर से बन रहा हूँ, मैं इधर से ढह रहा हूँ
यहाँ कौन देखता है, यहाँ कौन सोचता है
कि ये बात क्या हुई है,जो मैं शे’र कह रहा हूँ
क्या लगता नहीं कि एक महान क्रिकेटर के ऑफ फील्ड संन्यास को मजबूर होने के पीछे से कुछ ऐसी ही आवाज आ रही है। ‘मेरे दिल पे हाथ रखो, मेरी बेबसी को समझो, मैं इधर से बन रहा हूं, मैं इधर से ढह रहा हूं!’ अजीब नहीं लगा रविचन्द्रन अश्विन का यूं संन्यास ले लेना, वो भी उस टेस्ट सीरीज के बीच में जो टीम इंडिया के लिए विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप के फाइनल की टिकट विंडो बन चुकी हो?
ड्रेसिंग रूम और उससे इतर क्रिकेट बोर्ड में क्या उठा पटक चलती रहती है, जल्दी कुछ पता नहीं चल पाता। कुछ वैसे ही जैसे विशाल समुद्र में तमाम छोटी-बड़ी मछलियों को अचानक शार्क के पेट में जिंदा समा जाते समय तक कुछ पता नहीं चल पाता। इस संन्यास के पीछे की कहानी शायद कभी न खुले, क्योंकि खेल के दूसरे हिस्से में खिलाड़ियों के तमाम व्यावसायिक हित जुड़े होते हैं, जिस वजह से क्रिकेट के तमाम काले सफेद पन्ने सामने नहीं आ पाते। जो लाता है उस खिलाड़ी को समय की गर्त उड़ा ले जाती है और फिर भविष्य में जिसका कोई हाल लेवा नहीं रहता। ‘सदियों पुराना खेल हूं मैं, मर के अमर हो जाता हूं!’
जरा सोचिए! कैसे 13 साल लम्बे कॅरिअर में 537 टेस्ट विकेट लेने वाले एक महान गेंदबाज के टेस्ट जीवन का आकस्मिक अंत मीडिया हॉल में पत्रकारों के सामने हो जाता है! वह मीडिया से हाथ जोड़ लेता है कि आज आपके सवाल नहीं ले पाऊंगा, क्योंकि मेरे लिए यह बहुत ही भावुक पल है। इसी एक लाइन की गुजारिश में बहुत सारी बातें दफन हो जाती हैं और बहुत सारी बता भी जाती हैं। उनसे अब कोई कैसे पूछता कि अरे भाई ऐसी भी क्या जल्दी थी कि ऑफ द फील्ड रिटायरमेंट घोषित करना पड़ गया, वो भी तब जबकि सीरीज के दो अहम टेस्ट अभी बाकी थे?
इसकी एक नहीं अनेक वजहें हो सकती हैं लेकिन अब शायद ही कभी वे सार्वजनिक हों, लेकिन यह संन्यास सामान्य कतई नहीं लग रहा। खेल के मैदान पर दर्शकों के बीच से अपने क्रिकेट को अलविदा कहने का हर बड़े खिलाड़ी का सपना होता है। लेकिन यह अश्विन के क्रिकेट की अन नैचुरल डैथ थी, जिसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट शायद तब कागजों पर आए जब वह हर तरह से क्रिकेट से दूर होने बाद ऑटोबायोग्राफी लिखने बैठें। किसी ने ऐसे ही मौकों के लिए क्या खूब कहा है ‘छोटे-छोटे लम्हों की एक किताब है जिंदगी, एक खूबसूरत पन्ना आज लिखा हमने, कुछ पन्ने खाली छोड़ दिए, आगे लिखेंगे उन्हें!’
उम्र के अंकों पर न जाएं तो अश्विन के पास अभी क्रिकेट को देने के लिए काफी कुछ था। न्यूजीलैंड से सीरीज 0-3 से हारने के तुरंत बाद एक चर्चा वायरल हुई थी कि आस्ट्रेलिया सीरीज के बाद पांच खिलाड़ियों के कॅरिअर पर विराम लग सकता है। जो नाम सामने आए थे उनमें से एक अश्विन का भी था। लेकिन अभी तो सीरीज पूरी हुई ही कहां थी। मेलबर्न और सिडनी के टेस्ट बाकी थे, कहानी बदल भी तो सकती थी। वे आउट ऑफ फॉर्म भी नहीं थे, क्योंकि पिछले 11 टेस्ट मैचों में उनके नाम पर 47 विकेट चढ़े हुए हैं।
अश्विन को जिस एकमात्र एडिलेड के डे/नाइट टेस्ट में मौका दिया गया था, वहां स्पिनरों की कोई भूमिका होनी ही नहीं थी। पहली पारी में आस्ट्रेलिया के दस में से नौ विकेट तेज गेंदबाजों को मिले थे। आस्ट्रेलिया ने तो अपने स्पिनर नैथन लियोन को पूरे मैच में सिर्फ एक ही ओवर गेंदबाजी करवाई थी, जबकि भारत की दो पारियों के 20 विकेट तेज गेंदबाजों ने लिए थे। ऐसे हालात में भी जहां स्पिनरों के लिए विकेट पर कुछ नहीं था अश्विन ने पहली पारी में मिचेल मार्श का विकेट लिया था। अब इसे अश्विन की असफलता तो नहीं माना जा सकता है, क्योंकि एडिलेड के पिंक बॉल टेस्ट का यह विकेट खास तौर से तेज गेंदबाजों के लिए तैयार किया गया था। यहां दोनों पारियों में भारतीय बल्लेबाजों ने 180 और 175 रन ही बनाए थे।
अश्विन के पिछले 11 टेस्ट मैचों पर नजर डालें, इन मैचों में अश्विन ने 47 विकेट लिए थे, जो किसी भी मायने में बुरा प्रदर्शन नहीं कहा जा सकता। अश्विन को इंग्लैंड के खिलाफ 5 टेस्ट मैचों में 26, बांग्लादेश के खिलाफ 2 टेस्ट मैचों में 11, न्यूजीलैंड के खिलाफ तीन टेस्ट मैचों में 9 और आस्ट्रेलिया के खिलाफ एकमात्र टेस्ट मैच में एक विकेट मिला था।अश्विन फिर क्यों इतने भावुक हो गए कि उन्हें अगले दो टेस्ट का इंतजार करना भी समय की बर्बादी लगा। कुछ तो पता चला होगा, कोई तो बात टीम प्रबंधन से हुई होगी। ‘हम हैं एक उदास शाम का किस्सा, लोग सुनेंगे और गुजर जाएंगे!’ अश्विन के मामले में भी कहीं ऐसा ही न हो।
इस संन्यास में पर्दे के पीछे क्या घटा यह तो मालूम नहीं लेकिन हर क्रिकेट प्रेमी इस महान गेंदबाज को सम्मानित तरीके से अपना अंतिम टेस्ट खेलते देखना चाहता था। अश्विन के साथ पीछे कितना अन्याय हुआ यह भी किसी से छिपा नहीं है। एक समय ऐसा भी था कि जब इस मैच विनर गेंदबाज को बिना किसी वजह टीम में जगह नहीं मिलती थी। किसी मैच में नहीं चला तो उसको ही कोसा जाता था। कौन थे वे कप्तान सभी जानते हैं। आज जो हुआ उसने टीम इंडिया के उन सीनियर क्रिकेटरों की नींद उड़ा दी होगी, जो परफॉर्म भी नहीं कर रहे और लगातार खेल भी रहे हैं। अगला नम्बर उनमें से भी किसी का हो सकता है। हालांकि वे भी सम्मानजनक तरीके से विदाई के हकदार हैं।