कांव-कांव : यह तो बड़ा मजेदार किस्सा लेकर आया है कौआ, तो चलिए कुछ मीठा हो जाए!

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कौआ आज काफी जॉली मूड में था। धनतेरस, दीपावली व अन्य त्यौहार निकल गए, हमारे कान उसकी कांव-कांव सुनने को तरस गए। शाम को कान में कागा की तीखी आवाज घुसी। देखा मुंडेर पर साहब मस्ती का तराना छेड़े हुए हैं। पूछा कहां थे इतने दिनों से, तो बोले भाई पीछे कई त्यौहार थे सोचा किसी को क्यों परेशान किया जाए। लेकिन आज कुछ ऐसी खबर लाया हूं कि आपको भी मजे आ जाएंगे। हमने कहा जल्दी बता भाई, वह बोला, तो चलिए कुछ मीठा हो जाए। मैंने कहा कुछ समझा नहीं?

अब कागा ने जो बताया तो हंसते-हंसते अपने पेट में दर्द होने लग गया। हुआ कुछ यूं कि देश के अन्य शहरों की तरह यहां भी दीपावली पर अपनों को मिठाई वितरण और उपहारों के आदान-प्रदान का चलन है, यह अपनी संस्कृति भी है। शहर में एक खेल के मुख्तार ने एक चर्चित भाई को जंबो सूची थमाकर लगा दिया मिठाई और उपहार बांटने के काम में। भाई भी बहुत बड़ा वाला निकला। उसने उस सूची से नापसंद लोगों के नामों की कतर ब्यौंत कर उनकी जगह अपने भाई बिरादरी के कुछ नाम जोड़े और बाकी घर की अलमारी में जमा कर अपनी हैप्पी दिवाली कर ली।

अब यह बात कहां छिपने वाली थी, यहां तो जो रह गए वे चुप कैसे बैठते, सो लगे कानाफूसी करने। किसी ने इसे अपनी तौहीन कहा तो किसी ने इसके लिए मुख्तार पर ही दोष मढ़ दिया। किसी ने सीधे मुख्तार से ही अपनी अनदेखी की शिकायत कर डाली। तब पता चला कि जिसे काम सौंपा गया था वही उनके साथ दांव कर गया है। पोल तब खुली जब मुख्तार ने शिकायत की तस्दीक करने के लिए खुद सूची में शामिल लोगों से कन्फर्म करना शुरू किया। शिकायत सही निकली। अब बेचारा मुख्तार भी सोच में पड़ गया कि कैसे-कैसे लालची लीचड़ हैं, जो छोटी-छोटी चीजों पर भी नियत खराब कर लेते हैं। अब इनसे क्या कहना और क्या सजा देना।

बहुत सालों से खेल की दुनिया से संन्यास लिए था। अब लौटने पर इस तरह की घटनाएं सुनता हूं तो अजीब सा तो लगता ही है, गुदगुदी भी होने लगती है। खैर! जब से किस्सा सुना है तो रुक-रुक कर हंसी निकल ही जाती है। बस कल्पना कीजिए कभी मिठाई बांटने वाले का अपने घर की अलमारी सजाते और डिब्बे से मिठाई निकालकर खाते हुए खुशी से दमकता चेहरा तो कभी वंचित रह गए लोगों के चेहरों के हाव भाव, सच मानिए सोचकर हंसी रुकती ही नहीं। यकीन न हो तो आप भी जब सीरियस बैठे हों तो यह कल्पना करके देख लीजिए, हंसी न छूट जाए तो कांव-कांव बंद। और हां इस कॉलम में सिर्फ मस्ती के लिए किया जाने वाला व्यंग होता है, इसे कभी दिल से न लगाएं।

 

 

 

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