कांव-कांव : जंगल में मोर नाचा किसने देखा?

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(व्यंग)
घर में लगे पेड़ से आज एक कौव्वे की मरी-मरी आवाज में कांव-कांव सुनाई पड़ रही थी। एकदम वैसी ही जैसे बारिश में भीगकर सर और अपने पंखों से पानी झाड़ता कोई कौव्वा कांव-कांव करता है। हम उठे तो देखा कि अरे यह तो अपना खबरी कौव्वा ही है। पर यह क्या आज यह पेड़ की टहनी पर पत्तों से छिपकर क्यो डरते-डरते कांव-कांव कर रहा है।

पूछा तो बोला, कल एक खबर थी लेकिन हम इसलिए नहीं आए कि कहीं आप चंडू खाने की खबर बताकर मेरी ही खबर न ले लो। हमने कहा अरे भाई बताओ तो घटना क्या थी? कौव्वा अब हिम्मत जुटा पत्तों से सिर निकालकर बोला कि कल कुछ लोग कालपी रोड के साथ लगे एक मैदान में अपनी मांगें लेकर। हमने कहा कि हां पता है तो, क्या वे अपनी मांगें नहीं रख सकते? वह बोला कि अरे सुनो तो जरा, वे एक सफेद बाल वाले बुजुर्ग सज्जन से मिले और अपनी मांगें बता धरने की धमकी देकर चले गए। हम जमीन पर पड़ा पत्थर उठाने के लिए झुके तभी कौव्वा डाल से निकल कर उड़ते हुए मिमियाया कि हम तभी तो कल नहीं आए थे बताने कि आप दौड़ा लोगे।

कौव्वा अभी भी आस-पास ही हवा में उड़ते हुए कांव-कांव किए जा रहा था। अब आप लोगों को तो ट्रांसलेट कर बताना ही होगा कि वह क्या कह रहा था। दरअसल वह कह रहा था कि इन लोगों को कल सन्नाटे में आने की भला क्या जरूरत थी। यह 23 तारीख को भी तो आ सकते थे, जब पूरे प्रदेश के बडे़-बड़े पदाधिकारी यहां मौजूद थे। तब इनकी सुनी भी जाती और इन्हें ससम्मान भोजन भी करवाया जाता। हो सकता है तब इनकी मांगों पर कुछ साकारात्मक निर्णय भी हो जाता। लेकिन इनकी मंशा कुछ समझ में नहीं आई। यह तो वही बात हुई कि जंगल में मोर नाचा तो किसने देखा।

कौव्वा बातों-बातों में कह तो गया पते की बात। उसने एक बात और कही कि कहीं ऐसा तो नहीं कि दो दिन बाद मांग लेने पहुंचने वालों के लिए किसी ने खुद अपने पदाधिकारियों के खिलाफ ्क्रिरप्ट लिखकर भेजी हो और कह दिया हो कि पीछे से आना ताकि तुम्हारा भी काम चल जाए और हमारा भी मकसद पूरा हो जाए। यदि ऐसा हुआ होगा तो इनको बता देना कि ऐसे ये छले जाते रहेंगे और अपने क्रिकेटरों का भला भी नहीं कर पाएंगे। कौव्वा बोला कि आपकी ज्यादातर मांगें जायज हैं फिर क्यों नहीं आप मौके पर चौका जड़ते हो। और हां सफेद बाल वाले बुजुर्ग साहब से कुछ नहीं होने वाला साफ समझ लें। हमने कहा, ज्यादा ज्ञान मत बांच, सब समझदार हैं। उन्हें मालूम है कब क्या करना है।

कौव्वे ने उड़ते-उड़ते ही कहा कि जल्दी ही कुछ और खबर भी सुनने को मिलेगी। हमने पूछा तू तो स्वरूप नगर में मंडरा रहा था खबर कमला क्लब से उठा लाया, कहता कुछ है और करता कुछ है, तो कौव्वा आंख तरेर कर बोला कि अब कहां जाता हूं कहां नहीं इसका हिसाब न लो, कोई टीए डीए नहीं देते हो। मैं तो ग्रीनपार्क की मजलिस पर भी नजर रखता हूं और एक होटल में स्टीवर्ट से अभद्रता करने वाले के भी पीछे लगता हूं। लेकिन जब खबर पूरी पक जाती है तभी लाता हूं। यह कहकर कौव्वे ने पेड़ का गोल-गोल चक्कर काटा और उड़ गया नई दिशा की ओर।

 

 

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