कानपुर। दो प्रशिक्षकों, एक मैनेजर और एक बाबू का गठजोड़ ग्रीनपार्क स्टेडियम में चलने वाले खेलों को भ्रष्टाचार की दीमक बनकर चाट रहा है। जिस खेल परिसर में कभी प्रशिक्षुओं की भीड़ दिखती थी, वहां अब शौकिया खिलाड़ियों का जमघट रहता है। कई खेल तो विभाग की अनदेखी का शिकार होकर रुख्सत हो गए। ग्रीनपार्क में बनी शूटिंग रेंज बंद पड़ी है, क्योंकि इसको चलाने वाला कोई नहीं है। पावरलिफ्टिंग हाल की भी दशा कुछ ऐसी ही है। मौजूदा दौर में खिलाड़ियों की फिटनेस के लिए सबसे जरूरी फीजियोथेरेपी सेन्टर में अत्याधुनिक इक्युपमेंट और मशीनें भी नहीं लम्बे अर्से से नहीं आईं।
एथलेटिक्स, हैंडबाल, जूडो और ताइक्वांडो के लिए कोच ही नहीं
जिस हैंडबाल ने शहर से नेशनल लेवल के खिलाड़ी निकाले, अब कोच न होने की वजह से वह भी बंद हो गया है। जूडो, ताइक्वांडो, कबड्डी और एथलेटिक्स में कोई कोच न होने से इन खेलों की भी ग्रीनपार्क से लगभग विदाई ही हो चुकी है, जबकि एथलेटिक्स और जूडो में कभी प्रशिक्षुओं की भीड़ जुटा करती थी। पिछले अफसरों ने खुद पर ज्यादा फोकस रखा, इसलिए खेल पीछे छूटते गए जबकि उनकी गाड़ियां बदलती रहीं। ग्रीनपार्क के क्षेत्रीय कार्यालय में तैनात एक क्लर्क और एक पापुलर खेल के कोच की जुगलबंदी खूब चल रही है। ये दोनों तो इतने पावरफुल हैं कि आरएसओ चाहे जो भी आए, पर स्टेडियम में अफसरी इन दोनों की ही चलती है।
इस बाबू के इशारे पर ही चलते हैं ग्रीनपार्क के काम
ग्रीनपार्क के ही सूत्र बताते हैं कि इस बाबू ने स्टेडियम के अति आधुनिक जिम और बहुउद्देश्यीय हॉल को अपनी जागीर बना रखा है। बता दें कि केन्द्र सरकार की स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत तत्कालीन मंडलायुक्त और चेयरमैन स्मार्टसिटी डॉ. राजशेखर ने जीर्णशीर्ण हालत वाले जिम और बैडमिन्टन हॉल को पूर्ण एयरकंडीशन्ड, अति आधुनिक इक्युपमेंट और संशाधन मुहैय्या करवा इंटरनेशनल लेवल का बनवा दिया था। इसके बाद इसकी देखरेख की जिम्मेदारी ग्रीनपार्क प्रशासन को सौंप दी गई थी। लेकिन ग्रीनपार्क के अधिकारियों ने इसकी देखभाल मैनेजर और प्रशिक्षकों पर छोड़ दी। अपने अफसर की कमजोरी पर कड़ी नजर रखने वाले बाबू ने इस मौके को लपकने में जरा देर नहीं की और जल्दी ही जिम और बैडमिंटन हॉल भ्रष्टाचार का अड्डा बन गए।
पहले ऑनलाइन जमा होती थी मेम्बरशिप फीस
जिम के लिए 12 सौ और बैडमिंटन हॉल के लिए 15 सौ रुपए की मासिक मेम्बरशिप फीस है, जबकि अंडर-13 बच्चों के लिए वार्षिक शुल्क 300 रुपए है। मेम्बर्स को कार्ड बनाकर दिए गए हैं, जिसे वे स्वैप करके ही जिम में प्रवेश कर सकते थे। मेम्बरशिप फीस ऑनलाइन जमा होती थी। खेल प्रेमी डॉ. राजशेखर और तत्कालीन जिलाधिकारी विशाखजी जब तक रहे, व्यवस्था भी एकदम दुरुस्त रही। उनके जाते ही जिम और बैडमिन्टन हॉल ग्रीनपार्क के कुछ लोगों के लिए टकसाल बन गए। खबर है कि इन दिनों ऑनलाइन की बजाय मेम्बरशिप फीस कैश में ली जा रही है।
आरएसओ के आते ही बोर्ड पर लगने लगी सदस्यों की सूची
सूत्रों के अनुसार ग्रीन पार्क के जिम व बैडमिंटन हॉल में सदस्यों की सूची विगत अक्टूबर माह से लगाई ही नहीं की गई थी, क्योंकि मेम्बर्स की संख्या पता चलने पर वहां चल रहे खेल का भी खुलासा हो सकता था। सूत्र बताते हैं कि नई आरएसओ भानू प्रसाद जब मंगलवार जिम व बैडमिंटन हॉल के निरीक्षण के लिए पहुंचीं तो फौरन बोर्ड पर सदस्यों की सूची चिपका दी गई।
सदस्यता शुल्क प्राप्ति की रशीद देने से भी बचते
सूत्रों के अनुसार यह शिकायत भी की गई थी कि सदस्यता शुल्क लिए जाने के बाद भी कुछ सदस्यों को शुल्क प्राप्ति की रसीद नहीं दी जाती है। बोर्ड पर लगने वाली सूची में अभी भी कई सदस्यों के नाम शामिल नहीं हैं। इस बारे में बताया गया कि जिन सदस्यों ने अप्रैल का शुल्क जमा कर दिया है, उनके नाम सूची में शामिल किये गये हैं। अन्य सदस्यों से शुल्क प्राप्त होने के बाद उनके नाम भी लिस्ट में शामिल कर दिये जायेंगे। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब शुल्क जमा ही नहीं किया गया तो वे सुविधा का लाभ किसकी मिली भगत से उठा रहे हैं?
क्यों नहीं ठीक हुआ मेम्बर्स कार्ड स्कैनर
पिछले कुछ महीनों से मेम्बर्स कार्ड स्कैनर खराब पड़ा है। बताते हैं कि एक योजना के तहत उस कार्ड स्कैनर को खराब किया गया है, जिससे कार्ड स्वैप कर सदस्यों को प्रवेश मिलता था। फिलहाल स्कैनर के तार निकले पड़े हैं। यह कब खराब हुआ, क्या इसकी सूचना खेल विभाग के अफसरों को दी गई और दी गई तो क्यों नहीं ठीक कराया गया, इसका जवाब अभी मिलना बाकी है। जब 1 करोड़ 53 लाख की लागत से रेनोवेशन करवाया जा सकता है तो इस स्कैन मशीन को इतने दिनों से क्यों नहीं दुरुस्त करवाया गया? यह सवाल तो पिछले क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारियों से भी जरूर होना चाहिए।
जिम और बैडमिन्टन हॉल से खूब कमाई
सूत्र बताते हैं कि मौजूदा समय जिम में 150 और बैडमिन्टन हॉल में लगभग 100 शौकिया खिलाड़ी आते हैं। यानि महीने में एक लाख 80 हजार रुपए के लगभग मेम्बरशिप फीस तो जिम से ही आती है, जबकि एक लाख 50 हजार रुपए के लगभग बैडमिन्टन हॉल से आते हैं। लेकिन लगभग 3 लाख 30 हजार रुपए में सरकारी कोष में कितना धन जमा होता है, इस बारे में जांच के बाद अफसर ही बता सकते हैं। मेम्बर्स की संख्या क्या बताई जाती है यह भी वही जानते हैं। दरअसल सारी कहानी तो इसी के बंदरबांट में छिपी है।
अब तक हैंडओवर हो जाना चाहिए था नया हॉस्टल
अब जरा 80 बेड वाले नये छात्रावास की बात भी कर ली जाए। जनवरी के अंतिम सप्ताह में जिलाधिकारी जितेन्द्र प्रताप सिंह ने जब अचानक ग्रीनपार्क के नवनिर्मित हॉस्टल में चल रहे कायार्ें की गुणवत्ता जांची थी, तो उन्हें 4.5 करोड़ के इस प्रोजेक्ट में कई कमियां मिली थीं, जिसकी वजह से नये हॉस्टल को एनओसी नहीं दी गई थी। यह काम यूपी प्रोजेक्ट कॉरपोरेशन की एक यूनिट के पास था। डोर पैनल, कुंडिया और कबर्ड तक मानक के अनुसार नहीं थे। जांच में कबर्ड की थिकनेस 25 एमएम की बजाय 20 एमएम ही मिली थी। तब डीएम ने निर्माण कार्य की गुणवत्ता संतोष जनक न मिलने पर जांच बैठा दी थी। इस बात को कई महीने निकल चुके हैं।
नए छात्रावास का प्रोजेक्ट 11 महीने लेट
सुखद यह है कि यहां आने वाले प्रशासनिक अफसर खेलों के लिए उदार नजरिया रखते रहे हैं। यदि मौजूदा जिलाधिकारी ने सख्ती न दिखाई होती तो नया छात्रावास भी कब का करप्शन की बुनियाद पर खड़ा कर दिया जाता। हॉस्टल में फिलहाल आठ प्रशिक्षु ही हैं और नए सत्र के लिए बाकी 17 को लाने की तैयारी है। नए हॉस्टल को अब तक हैंडओवर हो जाना चाहिए था, लेकिन यह प्रक्रिया कब तक पूरी होगी, फिलहाल कहा नहीं जा सकता। यह परियोजना मार्च 2023 में पास हुई थी, जबकि उसी साल जून में इसका काम शुरू भी हो गया था। इसे जून 2024 में खत्म कर हैंडओवर कर देने का लक्ष्य रखा गया था। फिलहाल यह प्रोजेक्ट 11 महीने लेट हो चुका है।