दस साल बाद अचानक क्यों दे दी थी डॉ. अखिलेश दास स्टेडियम को रणजी मैच की मेजबानी

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– सात मैच खेल चुका है यूपी यहां, सिर्फ एक में मिली आउट राइट विक्ट्री
– बड़ौदा ने अपने दोनों मुकाबले यहां पर जीते, हरियाणा भी लीड लेकर गया
कानपुर। दस साल बाद एक बार फिर डॉ. अखिलेश दास स्टेडियम में रणजी टीमों को खेलते देखा जाता। लेकिन अब शायद ऐसा होने नहीं जा रहा। सुना है वैन्यू बदला जा रहा है। हालांकि बीस हजार दर्शकों की क्षमता वाला लखनऊ का डॉ. अखिलेश दास स्टेडियम यूपी के लिए मिश्रित सफलता वाला रहा है। यहां उसने सात रणजी मुकाबलों में सिर्फ एक में सीधी जीत दर्ज की, जबकि एक बार उसे पहली पारी की लीड लेकर नॉकआउट का टिकट मिला था। यहां अंतिम रणजी मुकाबला बड़ौदा के खिलाफ 2014-15 में हुआ था, जिसमें यूपी को दस विकेट से करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था।

क्या बीबीडी को दस साल बाद बिना खास तैयारी रणजी मैच की मेजबानी सौंपना सही निर्णय था ? सुना है कि यूपीसीए को गलती का अहसास हुआ है और अब इसे ए आर जयपुरिया को ही दिया जा रहा है। चलिए समय रहते चेत गए। लेकिन क्या पहले ही इसे लखनऊ के जयपुरिया ग्राउंड को नहीं दिया जा सकता था। बड़ौदा के लिए बीबीडी ग्राउंड लकी रहा है, जिसने यहां खेले अपने दोनों मुकाबलों में जीत दर्ज की थी। लेकिन यूसुफ पठान यहां की खराब आउटफील्ड से नाराज भी हुए थे। 2014-15 के बाद इस ग्राउंड पर कोई भी रणजी मैच नहीं खेला गया। पहले लखनऊ में रणजी मुकाबले केडी सिंह बाबू स्टेडियम में होते थे। शहर के बीच में स्टेडियम होने से दर्शकों की अच्छी खासी संख्या रहा करती थी।

लेकिन बीबीडी के इस स्टेडियम के अस्तित्व में आने के बाद केडी सिंह को मुकाबले मिलने ही बंद हो गए थे। ठीक उसी तरह से जैसे इकाना स्टेडियम बन जाने के बाद बीबीडी की बजाय मैच वहां जाने लगे। बाद में केडी सिंह हॉकी का स्टेडियम हो गया। यह तो समय चक्र है, क्योंकि इकाना ने खिलाड़ियों को सुविधाओं के मामले में देश के कई बड़े सेन्टरों को पीछे छोड़ कर दिया है। यूपीसीए भी इकाना को मैच सौंप निश्चिंत हो जाता है, हालांकि उसकी टीम मैच के दौरान रहती है।

इकाना को मैच मिलने लगे तो लखनऊ क्रिकेट एसोसिएशन (सीएएल) की इन मैचों के आयोजन में खास भूमिका भी नहीं रह गई, क्योंकि यूपीसीए इकाना को मैच देता है तो सीएएल के लिए कुछ खास करने को बचता ही नहीं है।इकाना में जब रणजी मैच होते हैं तो सीएएल सचिव की भूमिका लोकल मैनेजर जैसी रह जाती है। सरल स्वभाग के सीएएल सचिव मोहम्मद खलीक खान ने भी कभी यूपीसीए से अपनी तकलीफ नहीं जताई।

एक दशक बाद रणजी की मेजबानी करने वाला डॉ. दास स्टेडियम रणजी के लिए कितना तैयार है यह देखना होगा। हालांकि वहां डिस्ट्रिक्ट लेवल के मुकाबले होते रहते हैं, कुछ एज ग्रुप के बोर्ड ट्रॉफी मैच भी हुए हैं। असमतल आउटफील्ड की यहां खिलाड़ियों को काफी शिकायत थी।

इस ग्राउंड में अब तक सात रणजी ट्रॉफी मुकाबले हो चुके हैं। इनमें बड़ौदा की टीम के खिलाफ दो, दिल्ली, उड़ीसा, मुंबई, हरियाणा और रेलवे के खिलाफ यूपी एक एक मैच खेल चुकी है। इस सीजन में यहां यूपी को 18 से 21 अक्टूबर तक हरियाणा के खिलाफ इलीट ग्रुप सी का मैच खेलना है।

2007-08 में बड़ौदा की टीम को यहां जीत मिली थी, जबकि 2009-10 में दिल्ली पर यूपी टीम ने एक पारी 22 रनों से जीत दर्ज की थी। 2010-11 में उड़ीसा के खिलाफ मुकाबला ड्रॉ रहा था लेकिन पहली पारी की बढ़त के आधार पर यूपी ने नॉकआाउट दौर के लिए क्वालिफाई कर लिया था।

2011-12 में यूपी और मुंबई के बीच खेला गया मुकाबला बराबरी पर छूटा था लेकिन मुंबई की टीम पहली पारी के आधार पर यूपी से लीड लेकर यहां से नॉकआउट दौर में प्रवेश करने में सफल रही थी। 2012-13 में यूपी और हरियाणा के बीच मुकाबला ड्रॉ रहा था। तब पहली पारी में बढ़त लेकर हरियाणा ने नॉक आउट दौर का टिकट हासिल कर लिया था।

यह वो दौर था जब बीबीडी को हर सीजन में एक मैच की मेजबानी मिलना तय रहता था। 2012-13 में यहां रेलवे और यूपी का मुकाबला खराब मौसम की भेंट चढ़ गया था और दोनों टीमों को सिर्फ एक-एक अंक ही मिल सके थे। इसके बाद यहां यूपी ने अंतिम रणजी मुकाबला बड़ौदा के खिलाफ खेला, जिसमें बड़ौदा की टीम ने मेजबान टीम को दस विकेट से धो डाला था।

ये तो रही दास स्टेडियम की कहानी। लेकिन एक बात समझ में नहीं आती कि यूपीसीए को जब वैन्यू बांटने होते हैं तो वह जिला क्रिकेट एसोसिएशन को पूरी तरह से क्यों नहीं मैच आवंटित करता। यह जिला संघ का हक होना चाहिए कि वह अपने शहर में खुद मैच का आयोजक हो। कानपुर में यूपीसीए मुख्यालय होने की वजह से केसीए को छोटी-छोटी जिम्मेदारियां ही मिल पाती हैं।

लखनऊ क्रिकेट एसोसिएशन हो या कानपुर क्रिकेट एसोसिएशन, क्या रणजी या बोर्ड ट्रॉफी के अन्य मुकाबलों में यूपीसीए को अपने जिला संघों की काबिलियत पर भरोसा नहीं दिखाना चाहिए? यूपीसीए तो मुख्य आयोजक होता ही है। और फिर जिम्मेदारी मिलने पर ही तो जिला इकाई मजबूत हो सकती हैं। मेरठ को जैसे पूरा मैच कराने का दायित्व मिल जाता है वैसे ही अन्य जिलों पर भी भरोसा दिखाना जरूरी है।

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