जिधर देखो सलेक्शन को लेकर किच-किच मची हुई है। कोई भी खेल हो उसमें टैलेंट ही हर्ट हो रहा है। अब सलेक्टर्स, मुख्य कोच और टीम की फीजियोथेरेपिस्ट की गलती या कह लीजिए जानबूझ कर की गई लापरवाही से एक खिलाड़ी के हाथ से एज ग्रुप टीम में चयन का अंतिम मौका भी निकल गया। सुना है कि पिछले दिनों जिस लोकप्रिय खेल की महिला टीम में एक घायल खिलाड़ी को चुन लिया गया था, उसके साथ की गई लापरवाही ने यूपी की एक एज ग्रुप की टीम में खेलने का अंतिम मौका भी उससे छीन लिया। दरअसल जब उसे रिहेब में रहना था तब उसे घायल होने के बावजूद सीनियर महिला टीम के साथ टूर करवा दिया गया। मामला उछला तो किरकिरी होने पर चुपचाप उसे 15 की टीम से बाहर कर दिया गया।
यह खिलाड़ी अनफिट होने के बावजूद कैसे चुन ली गई और यदि इसका चयन जायज था तो हटाया क्यों गया? क्या कर रही है फीजियो, जब ऐसी खिलाड़ी चयन के लिए उपलब्ध हो जाती है और तो और उसका चयन भी हो जाता है। क्या है कोई इस खेल के सेलेक्टरों से यह पूछने वाला कि यह सब क्या और क्यों कर रही हैं? यहां बता दें कि जब यह खिलाड़ी चुनी गई तब उसके हाथ में पट्टी बंधी थी। अक्टूबर में हुई सर्जरी के बाद टांके तक नहीं कटे थे। इस तरह के सलेक्शन का मतलब है कि संबंधित खेल एसोसिएशन के पदाधिकारियों की आंखों में भी पट्टी ही बंधी है।
यहां इन सलेक्टरों और कानपुर में बैठी एक सुपर सेलेक्टर को यह भी याद दिला दें कि इसी सत्र में कुछ अच्छी लड़कियों को सलेक्टर्स ने यह कह कर टीम में जगह नहीं दी थी कि वे अभी पूरी तरह फिट नहीं हैं, इनको दौड़ने में दिक्कत दिख रही है, जबकि वे पूरी तरह से फिट थी और काफी टैलेंटेड भी थीं। उनका दोष सिर्फ इतना था कि उनके लिए ऊपर से कोई फोन नहीं आ पाया था। हर खिलाड़ी के लिए आपके मानक बदल क्यों जाते हैं? अब आपके वे मानक कहां गए? या यह सिर्फ उन टैलेंटेड खिलाड़ियों को रोकने भर के लिए आपने बना रखें हैं, जिनकी जगह आपको सिफारिशी खिलाड़ियों को जगह देनी होती है।
सीनियर वुमेन टीम में घायल खिलाड़ी को न चुना जाता तो अब तक वह फिट हो चुकी होती और ट्रायल में शिरकत कर रही होती। इस लापरवाही या मनमानी का परिणाम यह निकला कि ट्रायल तक यह खिलाड़ी फिट ही नहीं हो पाई। बताया जा रहा है कि अगले साल इस ग्रुप के लिए यह खिलाड़ी ओवर एज हो जाएगी। यानि एक एज ग्रुप से उसके लिए मौका खत्म हो गया। यह भी कि उसे जरूरी रेस्ट न करने देकर आपने उसके एक एज ग्रुप की टीम में खेलने का हक भी आपने खत्म कर दिया।
शर्मनाक यह है कि जिन पूर्व महिला खिलाड़ियों को उनके खेल ने भरपूर इज्जत और शोहरत दी वे ही अब इस खेल के साथ खिलवाड़ कर रही हैं। जब खेल को कुछ देने की बारी आई तो वे उसे नुकसान पहुंचा रही हैं। संभव है आपको कोच या सलेक्टर बनाते समय आपसे कुछ अपेक्षा रखी गई हो और आप उसी का मुआवजा भर रही हों। लेकिन आपको खेल ने क्या दिया और अब आपका उसके लिए क्या फर्ज है कम से कम इसे तो न भूलें।