-मैचों के दौरान स्कोरर्स की जिम्मेदारी इतनी सख्त होती है कि अक्सर वे लंच तक नहीं कर पाते
-इंटरनेशनल अम्पायरों को मदद, लेकिन स्टेट लेवल के अम्पायर्स 20 साल अम्पायरिंग करने के बाद भी उपेक्षित
संजीव मिश्र। कानपुर। बीसीसीआई की तरफ से रिटायर स्कोररों के लिए ग्रेटीज नहीं है। इन रिटायर स्कोररों को उनके राज्य क्रिकेट एसोसिएशन से भी कोई आर्थिक मदद नहीं मिल रही है। कुछ राज्य क्रिकेट संघों को जरूर इनकी मेहनत का अहसास है लेकिन ये गिनती के हैं। यही हाल स्टेट लेवल के अम्पायरों का भी है। बीसीसीआई शायद उन्हें राज्य क्रिकेट संघों की जिम्मेदारी मानता है लेकिन वे अब तक राज्य क्रिकेट संघ की प्लानिंग के किस पन्ने में हैं, पता नहीं। यहां कुछ राज्य क्रिकेट संघ जिनमें सौराष्ट्र, एमपी, कर्नाटक, दिल्ली और बंगाल अपने अम्पायरों के लिए जरूर कुछ करते हैं।
बोर्ड सिर्फ अपने रिटायर इंटरनेशनल अम्पायरों को ही पेंशन देता है। यह दिक्कत सिर्फ रिटायर स्कोरर्स और स्टेट के पूर्व अम्पायरों की ही नहीं हैं, बल्कि उनकी भी है जो आज बोर्ड और संघों के लिए पसीना बहा रहे हैं। ऐसे में उनके रिटायरमेंट के बाद की सुरक्षा की जिम्मेदारी आखिर किसकी है? यहां बात पुरुष ही नहीं महिला स्कोरर्स और अम्पायर्स दोनों की है।
स्पोर्ट्स लीक के पास मौजूद रिकॉर्ड्स के मुताबिक राज्य क्रिकेट संघ अपने स्कोररों को ग्रेटीज (भत्ता) नहीं दे रहे हैं। बीसीसीआई के सिर्फ 16 रिटायर स्कोरर हैं फिर भी उन्हें कुछ नहीं मिल रहा, है। संभवत: स्टेट लेवल पर भी स्कोररों को कहीं कुछ नहीं दिया जा रहा। इनमें अपवाद के तौर पर झारखंड क्रिकेट एसोसिएशन की जरूर तारीफ करनी होगी जिसने अपने स्कोरर एमएस रहमान को उनके रिटायरमेंट के तुरंत बाद सम्मानित कर एकमुश्त अच्छी धनराशि दी थी। उन स्कोररों को कुछ रिवार्ड न मिलना जो मैच के दौरान स्कोरशीट पर झुके रहते हैं हैरान करने वाली बात है, क्योंकि स्कोरर ही बीसीसीआई और राज्य क्रिकेट संघों से जुड़ा ऐसा ऑफिसियल होता है जो मैच शुरू होने के बाद अपनी कुर्सी से उठ नहीं सकता है।
स्कोरर की जिम्मेदारी इतनी कठिन होती है कि कभी-कभी तो लंच ब्रेक का भी अधिकांश समय स्कोरिंग शीट अपडेट करने में ही गुजर जाता है। इसके बावजूद बीसीसीआई या उसके स्टेट अपने स्कोरर के आर्थिक पहलू के लिए बहुत गंभीर नहीं नजर आ रहे। किसी भी मैच में स्कोरर की भूमिका कितनी अहम होती है यह बताने की जरूरत नहीं। बीसीसीआई पैनल से कानपुर के एक रिटायर स्कोरर हैं सौरभ चतुर्वेदी। कई दशकों तक स्कोरिंग करते रहे यूपीसीए ने उनकी एक बार जरूर 50 हजार रुपए की मदद की लेकिन इसके अलावा उन्हें बीसीसीआई या अपने स्टेट से कभी कुछ नहीं मिला।
यहां यह गौरतलब है कि सौरभ चतुर्वेदी के योगदान को उस खेल निदेशालय ने सम्मान दिया जिसके लिए कभी उन्होंने स्कोरिंग नहीं की। ग्रीनपार्क स्टेडियम की विजिटर्स गैलरी में चलने वाले वीडियो में उनके योगदान को विशेष स्थान मिला है। प्रदेश सरकार के तत्कालीन प्रमुख सचिव दुर्गा शंकर मिश्र उन्हें सम्मानित कर चुके हैं। वे सौरभ चतुर्वेदी को पुराने समय का स्कोरिंग कम्प्यूटर कहते हैं। सौरभ ने न जाने कितने खेल पत्रकारों को क्रिकेट के आंकड़ों से खबर बनाना भी सिखाया। यूपीसीए से अभी भी इस वृद्ध स्कोरर को अपने कार्य के रिवार्ड का इंतजार है।
अन्तर्राष्ट्रीय पूर्व अम्पायर स्कोररों से लकी
इस मामले में अम्पायर्स थोड़ा लकी हैं, उन्हें बीसीसीआई से कुछ न कुछ मिलता रहता है। बीसीसीआई टेस्ट और वन डे इंटरनेशनल खेले अम्पायरों को हर माह पेंशन दे रहा है। लेकिन यहां वे अम्पायर अपनी एसोसिएशन से कुछ नहीं पा रहे हैं, जिन्होंने कई सालों तक स्टेट के लिए अम्पायरिंग की लेकिन उन्हें इंटरनेशनल मैच नहीं मिल पाए। दिल्ली जिला क्रिकेट एसोसिएशन और कुछ अन्य स्टेट एसोसिएशन अपवाद हैं जो अपने स्टेट के अम्पायरों को कुछ दे रहे हैं। ऐसे में इन अम्पायरों और स्कोररों के दर्द को कौन सुनेगा, क्या बीसीसीआई और उसके राज्य क्रिकेट संघ अपनी अकूत धन की गंगोत्री से मात्र एक-एक लौटा जल इनके लिए नहीं निकाल सकते?
बीसीसीआई पैनल के रिटायर स्कोरर
बीसीसीआई पैनल के रिटायर स्कोररों में तपस राय (आसाम क्रिकेट एसोसिएशन), गौतम राय (बंगाल क्रिकेट एसोसिशन), नारायण लखोटिया (दिल्ली एंड डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन), एमएस रहमान (झारखंड स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन), बीवी वेंकटेश (कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन), आर भास्कर (कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन), एम नागराज (कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन), विश्वास गोसाल्कर (महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन), रमेश परब (मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन), उदय घरात (मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन), विवेक गुप्ते (मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन), टी. चेन्नाकेसवालु (तमिलनाडु क्रिकेट एसोसिसएशन), डी रविचन्द्रन (तमिलनाडु क्रिकेट एसोसिसएशन), नरेन्द्र नलवाया (टीम राजस्थान), ओपी शर्मा (टीम राजस्थान), सौरभ चतुर्वेदी (उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन) हैं। इनमें कुछ तो मदद के इंतजार में दिवंगत हो चुके हैं।