संजीव मिश्र – बूढ़ा हो रहा आपका ग्रीनपार्क स्टेडियम लम्बे अंतराल के बाद एक बार फिर टेस्ट मैच की मेजबानी के लिए खुद को तैयार कर रहा है। बूढ़ा इसलिए कहा क्योंकि अपनों ने ही उसकी सेहत का जरा भी ध्यान नहीं रखा। उसके सामने पैदा होने वाले स्टेडियमों को टेस्ट, वन डे, टी-20 और आईपीएल जैसे आयोजनों की बूस्टर डोज मिलती रही और वे जवां से और जवां होते गए।
आपके ग्रीनपार्क को अपने बच्चों से ठुकराए किसी बदनसीब पिता की तरह वृद्ध आश्रम में छोड़ दिया गया। नये स्टेडियमों की अपने दर्शकों के लिए गोद बड़ी होती गई पर ग्रीनपार्क के हालात और जर्जर होते गए। अब वो दर्शकों कि उतना बोझ भी उठाने में सक्षम नहीं रहा, जितना कुछ साल पहले उठाता रहा था। खैर, यह तो अच्छे-बुरे वक्त की कहानी है। फिलहाल ग्रीनपार्क को टिप टॉप करने की कठिन जिम्मेदारी एक टिप टॉप व्यक्ति को ही फिर सौंपी गई है।
उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन ने केसीए चेयरमैन संजय कपूर को आयोजन निदेशक, बोलें तो वैन्यू डायरेक्टर बनाकर एक कठिन चुनौती सिर पर डाल दी है। पिछले कुछ दिनों से संजय की सक्रियता से ग्रीनपार्क पर लगी जंग पर रेगमाल की घिसाई चल रही है।
पता ही होगा कि 27 सितम्बर से भारत और बांग्लादेश के बीच यहां दूसरा और अंतिम टेस्ट मैच होना है। भारत-बांग्लादेश सिरीज शुरू हो चुकी है। पहला टेस्ट चेन्नई में खेला जा रहा है। सच कहें तो लिए ग्रीनपार्क के लिए यह टेस्ट एक और मैच भर नहीं है। इस मैच से विश्व के सबसे पुराने टेस्ट सेंटरों में से एक ग्रीनपार्क स्टेडियम का अस्तित्व भी जुड़ा है। ग्रेटर नोएडा में बदनामी के बाद यूपीसीए के लिए यह मैच किसीकड़ी परीक्षा से कम नहीं। प्रशासन की टीम ने भी इसे काफी गंभीरता से लिया है।
ग्रेटर नोएडा में न्यूजीलैंड और अफगानिस्तान के बीच टेस्ट मैच के दौरान एक भी गेंद नहीं फेंकी जा सकी थी। खराब ड्रैनेज सिस्टम और इस टेस्ट के आयोजन में यूपीसीए को बाई पास कर अफगानिस्तान क्रिकेट के कर्ताधर्ताओं ने ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी से सीधे डीलिंग की जिसका खामियाजा जब दोनों टीमों ने भुगता तो बदनामी यूपीसीए के सिर डाल दी। इसको देखते हुए कानपुर टेस्ट और भी अहम हो जाता है।
पुरानी दर्शक क्षमता भले ही पूरी तरह से न लौटाई जा सके लेकिन इतना जरूर है कि अपने तमाम मसलों से जूझ रहे यूपीसीए के लिए केसीए चेयरमैन इस टेस्ट के आयोजन को यदि सही सलामत करवा देते हैं तो वह संकटमोचक ही कहलाएंगे, क्योंकि वे भी जानते हैं कि यह मैच एक चुनौती है, समय कम है और काम बहुत।
तीन साल पहले यहां न्यूजीलैंड के साथ टेस्ट हुआ था, उसके बाद से स्टेडियम में झाड़ पोंछ तक ठीक से नहीं हुई थी लिहाज जाले साफ करवाने से लेकर आउटफील्ड की घास कटवाने तक का काम भी करवाना था। एक बात तो माननी पड़ेगी, संजय कपूर को यूपीसीए तभी याद करता है जब फंसी लकड़ी निकलवानी हो। इस बार का आयोजन हाल में हुई सीजन की सबसे भारी बारिश के बाद और चुनौतीपूर्ण हो गया है। अच्छा यह रहा कि समय रहते ड्रैनेज सिस्टम की भी चेकिंग हो गई।