-टीम में है एक ‘हिटलर’, न खाया न अपने खिलाड़ियों को खाने दिया
जर्मनी में एक तानाशाह था हिटलर। सुना है कि इजाजत के बिना सेना में उसके सैनिक खुजली तक नहीं मचा सकते थे। अजी छोड़िये हिटलर को आज की पीढ़ी ने उसे देखा ही नहीं तो उसका क्या उदाहरण देना। लेकिन मिस्टर इंडिया फिल्म में मुगांबो के किरदार को जरूर देखा होगा, जो हिटलर की कॉपी करता था। कुछ ऐसा ही व्यवहार है इन दिन एक घरेलू ‘सेना’ के ‘मुगांबो’ का। अपनी सेना से प्रदर्शन तो करवा नहीं पा रहा है, उल्टा माइंड फे्रश करने का कोई मौका मिलता है तो फटकार लगाकर सेना को उसकी बैरक वापस भेज देता है। यह हम नहीं हमारा कौव्वा कह रहा है, जो पिछले दिनों राजधानी में था।
दरअसल यह खबर कौव्वा एक स्टेट की राजधानी से लाया है। बता रहा था कि मौसम चेंज हो रहा है और कोच को नजला हो गया है, लेकिन वह अपना नजला खिलाड़ियों पर उतार रहा है। हमने पूछा वह कैसे, तो बोला कि शनिवार को एक होटल में क्रिकेट की लोकल बॉडी ने मेहमान और मेजबान टीमों के सम्मान में उन्हें डिनर पर आमंत्रित किया। लेकिन होस्ट उस दिन का स्कोर बोर्ड देखना भूल गए। मैदान में मेजबान गेंदबाज विकेट के लिए तरस रहे थे और मेहमान बल्लेबाज उन्हें खूब पद्दी करा रहे थे। कोच ड्रेसिंग रूम में भुनभुना रहे थे।
हालांकि निमंत्रण पहले भेजा जा चुका था लेकिन टीम का माहौल बदल चुका था। रात में जब खिलाड़ी तैयार होने लगे तो कोच गुस्से से फट पड़ा कि विकेट तो ले नहीं पा रहे हो और खाना खाने को उतावले हो रहे हो। कोई नहीं जाएगा डिनर पर। खिलाड़ी चुपचाप अपने रूम में चले गए। हां कोच ने उन रिजर्व खिलाड़ियों को पार्टी में जाने दिया जो बेचारे लगातार मैदान में अपनी टीम की दुर्गति देख रहे थे।
कौव्वे ने बताया कि एक खिलाड़ी किसी को अपना दर्द बयां कर रहा था कि कोच हमसे सलाह ही नहीं लेता, वह तो अपनी ही चलाता है। हम कोई बंधुवा खिलाड़ी तो है नहीं। इससे अच्छे तो अपने देसी कोच हुआ करते थे, कम से कम टीम के खिलाड़ियों से बात तो करते थे और उनकी सुनते थे। संघ इन्हें ज्यादा पैसा भी देता है और ये हर साल खाने के बाद उसी की बजाकर चल देते हैं।
ऐसा नहीं कि उस दिन टीम के किसी खिलाड़ी ने खाना न खाया हो। ऐसा भी नहीं कि मैच के दौरान जब इमरती रबड़ी न चली हो तो कोच या कोई खिलाड़ी उसका मजा लेने से चूका हो। लेकिन बेचारे डिनर पार्टी के होस्ट को मेहमान टीम के सामने शर्मिंदा होना पड़ा, क्योंकि वे टाइम से पार्टी में पहुंच गए थे पर मेजबान टीम ही गायब थी। वैसे भी बाहरी कोच को इस शहर की मेहमान नवाजी की संस्कृति से क्या लेना देना। उसे तो पूरे सीजन के लिए मोटी रकम मिल ही रही है। दो साल से टीम का प्रदर्शन सिर्फ भागेदारी तक ही सीमित रहा है। मानो हर साल कोच उर्स में टीम को घुमाने और मेला दिखाने लाता हो।
कमाल तो यह है कि इस कोच ने क्रिकेट संघ से अपनी पसंद के घरेलू विकेटों पर मैच करवाने की जिद रखी और उसकी जिद माननी भी पड़ी। फिर भी रिजल्ट वही ढाक के तीन पात। अगले मैच में तो उसका स्टार पेसर भी नहीं होगा। अब घरेलू विकेट पर जो अंतिम मैच खेलना है वह कोच की कभी होम टीम हुआ करती थी। वह उसकी ताकत से बखूबी वाकिफ है। लिहाजा आगे भी कोच के लिए सिर धुनने की स्थिति ही आ सकती है। एक दो मैचों में ठीक खेल गए तो उसी का मुआवजा अगले साल भी लेने का दावा करने संघ पहुंच जाएंगे। कौव्वा बोला कि इनको समझा दीजिए कि यह हर साल लगने वाला मेला नहीं, परफॉर्मेंस दीजिए या टीम छोड़िए। यह सुझाव देकर कौव्वा उड़ गया।