इनकी चलने दी तो यूपी क्रिकेट को पटरी पर लौटा लाएगी ज्ञानेन्द्र पांडेय, आशीष विंस्टन जैदी और प्रवीण कुमार की तिकड़ी

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संजीव मिश्र। कानपुर। रणजी में खराब प्रदर्शन के बाद से ही यूपीसीए में कुछ बदलाव दिखने लगे थे। खासकर सैय्यद मुश्ताक अली ट्रॉफी में खिलाड़ियों की बारात ले जाने के बावजूद 15 की टीम में ज्यादा छेड़छाड़ न होने से संकेत मिल गए थे कि प्रवीण कुमार और आशीष विंस्टन जैदी ने अपना काम शुरू कर दिया है। इसका रिजल्ट भी नजर आया। यूपी की टीम क्वार्टर फाइनल तक पहुंच चुकी है। हालांकि सेमीफाइनल के रास्ते की बाधा दिल्ली की वही टीम है जिसने लीग के पहले मुकाबले में उसे शिकस्त दी थी।

ज्ञानेन्द्र पांडेय को तब लाए जब रणजी में यूपी की लंका लग गई

यूपीसीए ने अब ज्ञानेन्द्र पांडेय को सीनियर टीम का डायरेक्टर बनाकर अपनी गल्तियों को सुधारने की दिशा में कोशिशें शुरू करने के संकेत दिए हैं। लेकिन क्या पाण्डेय जी को लाने में ज्यादा देर नहीं कर दी, क्योंकि रणजी में तो यूपी की लंका पहले ही लग चुकी है। सीनियर टीम के निदेशक का पद कोई खास नहीं होता लेकिन ज्ञानेन्द्र पांडेय में इतनी क्षमताएं हैं कि वह इस पद पर रह कर भी टीम को काफी फायदा पहुंचा सकते हैं। वैसे उनको यदि तीन चार साल पहले लाया गया होता तो टीम की दुर्दशा भी न हुई होती।

सुनील जोशी से अहम का हो सकता है टकराव

एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि क्या टीम के डायरेक्टर के हाथ खुले रखे जाएंगे यानि उनको पर्याप्त क्रिकेटीय अधिकार भी दिए जाएंगे। मुख्य कोच सुनील जोशी उन्हें काम करने देंगे या दोनों में अहम का टकराव होता है तब स्थितियों को कैसे हैंडल किया जाएगा? ज्ञानेन्द्र पांडेय को यदि क्रिकेटीय इस्तेमाल के लिए यह पद दिया गया है तो यूपी टीम को जितना बेहतर यह पूर्व कप्तान समझता है शायद ही कोई दूसरा पूर्व क्रिकेटर समझता हो। ज्ञानेन्द्र की कप्तानी में यूपी की टीम रणजी ट्रॉफी के फाइनल में भी पहुंची थी, इसलिए उनका अनुभव सुनील जोशी से ज्यादा टीम के काम आएगा।

क्या अगले सीजन सुनील जोशी को रिप्लेस करेंगे ज्ञानेन्द्र

सुनील जोशी को कोच के रूप में दो कार्यकाल मिले लेकिन एक बार भी उनके रहते टीम का प्रदर्शन संतोषजनक कहलाने लायक भी नहीं रहा। वैसे रणजी ट्रॉफी के मौजूदा सीजन में घरेलू मैदानों और फिर पंजाब के खिलाफ जो बेसिक गल्तियां की गईं उसके बाद सुनील जोशी को और मौका देने की जरूरत रह भी नहीं जाती है। एक संभावना यह भी है कि यूपीसीए के थिंक टैंक को भी ऐसा ही लगने लगा हो और ज्ञानेन्द्र पाण्डेय को अगले सीजन कोच बनाकर लाने के लिए ही फिलहाल डायरेक्टर के तौर पर टीम के साथ लगाया गया हो ताकि वे सारी स्थितियों को ठीक से समझ सकें। बाहरी कोचों ने वैसे भी यूपी टीम का बेड़ा गर्क ही किया है।

ज्ञानेन्द्र, पीके और जैदी के बीच है अच्छी अंडरस्टैंडिंग

यूपी की सीनियर चयनसमिति के चीफ प्रवीण कुमार हैं, जबकि उनकी सलेक्शन कमेटी में आशीष विंस्टन जैदी जैसा अनुभवी सदस्य भी है। खास बात यह है कि दोनों ही ज्ञानेन्द्र पांडेय पांडेय के साथ यूपी टीम में खेल चुके हैं, इसलिए तीनों के बीच अच्छी अंडर स्टैंडिंग हैं। यह भी साफ हो चुका है कि यूपी टीम को सुनील जोशी से फायदा नहीं हो रहा है। तो उन पर भारी धनराशि खर्च करने की जरूरत भी क्या है? दरअसल रणजी लेवल पर खिलाड़ियों को कोच से ज्यादा मेंटॉर की जरूरत होती है।

खिलाड़ियों के लिए वीडियो एनॉलिस्ट ज्यादा उपयोगी

यहां बता दें कि सीनियर टीम के खिलाड़ियों को कोचिंग नहीं बल्कि उनमें एकजुटता लाने की जरूरत होती है, क्योंकि भुवनेश्वर कुमार या यश दयाल आपसे यह तो सीखेंगे नहीं कि बॉल कैसे डालें या रिंकू सिंह आपसे यह नहीं पूछेंगे कि बल्लेबाजी कैसे करें। दरअसल यह काम तो अब वीडियो एनॉलिस्ट का है, उसके साफ्टवेयर में गेंदबाज और बल्लेबाजी की सभी कमियों का लेखा-जोखा होता है और खिलाड़ी खुद उसके पास जाकर पता कर लेता है कि उसे अपनी कौन से कमियों पर काम करना है। मैच में गेंदबाजी या बल्लेबाजी के दौरान क्या गलती की और कौन सी कमियां सुधारनी हैं।

ज्ञानेन्द्र अच्छे मेटॉर साबित हो सकते हैं सीनियर टीम के लिए

ज्ञानेन्द्र पहले भी यूपी टीम के कोच से ज्यादा अच्छे मेटॉर रह चुके हैं। उनमें टीम के साथ घुलने-मिलने की खूबी है। खिलाड़ियों में भी उनके लिए सम्मान रहता है। दूसरी ओर सुनील जोशी के साथ टीम सहज नहीं है। ज्ञानेन्द्र पांडेय में टीम को एकजुट रखने की खूबी भी है। यदि उनका क्रिकेट सुधारने के लिए इस्तेमाल होता है तो अगले सत्र में यूपी का प्रदर्शन अलग और बेहतर दिख सकता है। लेकिन इसमें शर्त वही होगी कि आप टीम सलेक्शन से यूपीसीए के मिस्टर इंडिया (अदृश्य शक्ति) को कितना दूर रख पाते हैं। यदि दखलंदाजी जारी रहती है तो आगे भी कुछ नहीं बदलने जा रहा।

बाहर के पूर्व खिलाड़ियों को जूनियर पर लगाएं

पूर्व खिलाड़ियों को यूपीसीए अपनी एज ग्रुप टीमों को ग्रूम करने के काम में ला सकता है। उनकी कमियों पर आप नेट्स पर वर्क कर सकते हैं। ऑफ सीजन में ऐसे पूर्व खिलाड़ियों को कुछ समय में लिए हायर कर ज्यादा फायदा लिया जा सकता है। वे अंडर-14 और अंडर-16 के खिलाड़ियों को तैयार करें तो राज्य के क्रिकेट के लिए ज्यादा फायदेमंद होगा, क्योंकि कभी यूपी क्रिकेट की सप्लाई लाइन बनने वाले स्पोर्ट्स कॉलेज और हॉस्टल से अब टैलेंट नहीं आ रहा है। पूर्व क्रिकेटर जूनियर लेवल से कप्तान को भी नर्चर कर सीनियर टीम के लिए नेतृत्व की बेंच स्ट्रेंथ तैयार कर सकते हैं।

विजय हजारे ट्रॉफी में मिल सकता है फायदा, बशर्ते…

रणजी ट्रॉफी में इस सीजन अब कुछ भी कर लीजिए वापसी नहीं होने वाली है। लेकिन सैय्यद मुश्ताक अली ट्रॉफी के लिए अभी यूपी के दरवाजे खुले हुए हैं। ज्ञानेन्द्र पांडेय के आने का फायदा विजय हजारे ट्रॉफी में भी मिल सकता है लेकिन इसके लिए प्रवीण कुमार और आशीष विंस्टन जैदी को एक मजबूत टीम चुनने के लिए खुले हाथ देना भी जरूरी है। ज्ञानेन्द्र को अचानक सीनियर टीम का निदेशक बनाने के पीछे क्या मंशा है यह तो यूपीसीए का थिंक टैंक ही जाने लेकिन लगता नहीं कि ज्ञानेन्द्र का सिर्फ क्रिकेटीय इस्तेमाल ही होगा।

 

 

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