(व्यंग)
‘भाई यह तो कमाल है! अभी तक सहारनपुर के खिलाड़ियों को लेकर हाय तौबा मची रहती थी, भले ही वहां से अच्छे लौंडे मिल रहे हों लेकिन अब तो आगरा वाली, लखनऊ वाली और कानपुर वाली भी चर्चा में हैं। हमारे यहां सुबह चिड़ियों के लिए नमकीन भुजिया बिखेर दी जाती है। चिड़िया अपने समय पर आती हैं और खाकर उड़ जाती हैं। इसके बाद कौव्वे भी अपना हिस्सा ले जाते हैं। लेकिन आज सुबह कौव्वों के बीच एक कौव्वा बिना चोंच में कुछ लिए मुंह फुलाए बैठा कांव-कांव ही किए जा रहा था।
अल सुबह कांव-कांव सुनाई पड़ी तो आंख खुल गई, देखा साहब मुंडेर पर बैठे हैं। पत्नी भी समझ गईं, मुंह बना गरदन झटकते हुए बोलीं जाइये वही हैं, फिर कुछ शिकायत लेकर आए होंगे। आंखें मलते बाहर पहुंचा तो कौव्वे ने हमारे सामने खोल दिया शिकायत का पिटारा। बोला आप कुछ देखते क्यों नहीं, महिला क्रिकेट में चयन हो रहा है या कोटा सिस्टम से काम हो रहा है। अब बताइये क्यों आगरामय हो गई है एक टीम?
हमने कहा, अरे सुस्ता तो ले भइये फिर बता कि आखिर माजरा क्या है। इतना तो समझ में आ ही गया था कि किसी महिला क्रिकेट टीम के चयन से नाराज हैं हमारे कागा। थोड़ी देर सुस्ताने के बाद कागा ने सवाल दागा कि क्या कोई कोच आगरा से है? हमने कंधे उचकाते हुए कहा, मुझे क्या मालूम। मैं तो भाई अभी सारा नेक्सस समझने का प्रयास कर रहा हूं।
कौव्वा बोला ज्यादा स्मार्ट मत बनो, तुम सब जानते हो कि कल घोषित टीम आगरामय दिख रही है। क्या तुम्हें पता है कि इस टीम की कोच के परिवार की एक सदस्य सहित स्टैंडबाई मिला कर आगरा की कुल सात खिलाड़ी हैं। इस पर हमने कहा, तो क्या हुआ, वहां टैलेंट ओवरफ्लो हो गया होगा। और रिश्तेदार है तो क्या उसे खेलने का हक नहीं?
कागा बोला अरे नहीं, यह ओवरफ्लो नहीं कानपुर-आगरा की मिली जुली सरकार काम कर रही है, जो असली टैलेंट को ‘अभी और मेहनत करो, अगली बार देखेंगे’ कह कर अपनों को रेवड़ी बांट रही है। वह बोला कि पता है अगले हफ्ते एक वन डे टूर्नामेंट शुरू होने जा रहा है, जिसके लिए ही इस टीम का चयन किया जा गया है। हमने फिर कंधे उचकाए और कहा होगा, हमें क्या।
हमारे इस एटीट्यूड से चिढ़कर वह बोला, तुम घर में बैठे रहो, उधर बेचारी गरीब प्रतिभाएं आंसू टपका रही हैं। कौव्वा विफरते हुए बोला कि क्या कोई बताएगा कि आगरा की एक खिलाड़ी एक दशक से लगातार क्यों खेल रही है, जब उसे इससे आगे नहीं बढ़ना है तो क्यों बार-बार टीम में रख लेंते हैं। एक तो दिल्ली से आई है, वहां कभी खेल नहीं पाई अब एनओसी लेकर आगरा आ गई है तो उसे भी टीम में जगह मिल गई। हमने कहा भाई मुझे तेरी बात पर रत्ती भर भरोसा नहीं। तेरे बच्चे खेल नहीं सकते फिर क्यों तू दूसरे की फटी में चोंच मारता रहता है। आराम से बैठ और जिंदगी का मजा ले।
हमने उसे समझाया कि यार कब तक ईमानदारी की च्युविंगम चबाओगे। तुम भी सिस्टम में शामिल हो कर रबड़ी खाओ। इस पर कौव्वा बोला, तुम भी काफी बदल गए हो। मेरी बात को तबज्जो नहीं देते हो। तुम्हारा यही रवैय्या रहा तो यूपी का क्रिकेट तो लुट जाएगा। इस पर हमने समझाया कि देख भाई यहां तो ऐसे ही चलेगा, कभी लोग सहारनपुर वाले की टांग खींचेंगे तो कभी मेरठ वाले की। तुझे नहीं खानी रबड़ी तो न खा, आजकल जलेबी खूब बिक रही है वही खा ले। लेकिन चुप्पे रह और हां सुबह-सुबह ‘शरीफों’ की शिकायत की बजाय कुछ अच्छा हुआ हो तो वो भी बता दिया कर। लेकिन कौव्वे को हमारा यह सत्संग पचा नहीं और आंखों में आंसू भरकर स्वरूप नगर की तरफ उड़ गया।