संजीव मिश्र। कानपुर। ‘बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का जो चीरा तो कतरा-ए-खून न निकला।’ हैदर अली आतिश का यह शेर अचानक ही याद नहीं आया, बल्कि जब खुशियां लुट गईं तब याद आया। दरअसल मामला ग्रीनपार्क स्टेडियम के मीडिया सेन्टर से जुड़ा हुआ है। शहर प्रशासन और यूपीसीए ने इस मैच के लिए हर छोटी से छोटी कमी दूर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यह नजर भी आ रहा है लेकिन वहां चूक कर दी जहां से बात दूर तक जाती है।
भारत-बांग्लादेश के बीच यहां दूसरा टेस्ट मैच खेला जा रहा है। 2016 में भारत-न्यूजीलैंड टेस्ट के दौरान कानपुर शहर के दामाद सुनील मनोहर गावस्कर ने मीडिया सेन्टर में चढ़ने उतरने के लिए लिफ्ट न होने का दर्द बयां किया था। उनको बढ़ती उम्र में तीसरी मंजिल तक चढ़ कर कमेंट्री करने जाना पड़ता था। अपने समाज में दामाद की इच्छा सिर आंखों पर रखने का रिवाज है। सो 500वें टेस्ट में मौजूद तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मीडिया सेन्टर में लिफ्ट लगवाने का वादा भी कर दिया।
देश भर से आने वाले वे सीनियर जर्नलिस्ट भी खुश हो गए जिन्हें भी सीढ़ियों की चढ़ाई तकलीफ देती थी। तो लिफ्ट लगवाने की तैयारी शुरू हो गई। सरकारी फाइलें चलनी शुरू हो गईं। एक साल, दो साल, तीन साल और न जाने कितने साल निकल गए पर लिफ्ट नहीं लगी। गावस्कर फिर आए मैच की कमेंट्री करने फिर उनको कहा गया कि अगली बार आप को लिफ्ट से ही कमेंट्री बॉक्स के फ्लोर तक भेजा जाएगा। लेकिन लिफ्ट फिर नहीं लग पाई और सरकार भी बदल गई। खैर जब लिफ्ट लगने का शुभ मुहूर्त निकला तो गावस्कर से उसका भूमि पूजन करवाया गया।
गावस्कर तब बोले थे कि कानपुर मेरी ससुराल है इसलिए यहां के मीडिया सेन्टर में लिफ्ट लगने की मुझे ज्यादा खुशी हो रही है। अंतत: गावस्कर को लिफ्ट के प्रयोग का मौका भी मिल गया लेकिन यह क्या मीडिया कर्मियों के साथ तो खेल हो गया। मीडिया सेन्टर में आने वाले देश-विदेश के रिपोर्टर अब भी सीढ़ियों से ही हांफते-हांफते ऊपर अपनी सीट तक पहुंचत हैं, क्योंकि यह लिफ्ट सिर्फ ब्रॉडकास्टिंग वालों के लिए ही है।
मीडिया सेन्टर की लिफ्ट ग्राउंड फ्लोर से सीधे थर्ड फ्लोर पर ही रुकती है, जबकि दूसरी मंजिल पर रिपोर्टर बैठते हैं लेकिन लिफ्ट नॉन स्टॉप है। रिपोर्टर को उस तरफ जाने की इजाजत ही नहीं है। ऐसे समझ लीजिए कि रिपोर्टर की स्थिति उन छोटे शहरों की तरह है जहां पर लोग वंदेभारत या शताब्दी एक्सप्रेस को दनदनाते गुजरते तो देख सकते हैं पर उनके स्टेशन पर रुकती ही नहीं इसलिए उससे सफर नहीं कर सकते।
मीडिया सेन्टर में थर्ड फ्लोर की हालत गरीब इंसान के घर की छत की तरह ही है, जो बारिश में जगह-जगह से टपकती रहती है। पिछले 20 सालों से हर मैच में इसे कवर करने की योजना बनती और फिर मैच खत्म होते ही खत्म हो जाती। मीडिया सेन्टर के बॉक्स और गैलरी में जगह-जगह पानी टपकता रहता है। बाहर के मीडिया ने एक बॉक्स में तो पानी की बोतलों को रखकर फ्लोर को गीला होने से बचाया।
इसमें कोई दो राय नहीं कि आयोजकों ने मीडिया सेन्टर की अन्य व्यवस्थाएं सुधारने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है लेकिन आपकी सारी मेहनत तब बेकार हो जाती है जब बाहर से आया मीडिया आज के दौर में टपकती छत के नीचे बैठकर काम करने को मजबूर होता है। वह कानपुर की हंसी उड़ाता है तो दु:ख भी होता है।
मैच से कुछ दिन पहले हुई भारी बारिश में भी यहां छत टपकी होगी लेकिन किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। शायद सारा फोकस अन्य व्यवस्थाओं और ग्राउंड पर रहा होगा। सफल आयोजन का दावा कर आप चाहे अपनी कितनी पीठ ठोंक लें लेकिन यह जरा सी लापरवाही आपके सारे अच्छे किए कराए पर पानी फेर देने के लिए काफी है, क्योंकि दिल्ली, मुंबई से आए मीडिया कर्मी यहां के मीडिया सेन्टर की स्थिति बीसीसीसीआई से जरूर बताने वाले हैं।
मैच रैफरी रूम में भी पानी भरा!
आज थोड़ी देर की बारिश में ही मैच रैफरी रूम में पानी भर गया। सूत्रों ने बताया कि इस रूम की छत भी टपक रही है। ये कमियां तो अपने ग्रीनपार्क सेन्टर को बिल्कुल खत्म ही कर देंगीं। बीसीसीआई उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला को यह मैच यहां लाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी है। ऐसे में अगला मैच वे ग्रीनपार्क के किस प्रजेंटेशन के साथ ला पाएंगे?
वैन्यू डायरेक्टर संजय कपूर ने रात दिन एक कर बहुत सारी चीजें सुधार दीं लेकिन वे 20 दिनों में न तो ग्रीनपार्क को जादुई छड़ी घुमाकर इकाना या अहमदाबाद जैसा सेन्टर बना सकते हैं और न ही रातों रात उसका ड्रैनेज सिस्टम सुधार सकते हैं। जरा विचार कीजिए कि लगभग आधे घंटे की बारिश से ही स्टेडियम में इतना पानी भर गया कि जलकल विभाग से सकिंग मशीनें मंगवाकर पानी निकालवाना पड़ा। यूपीसीए के एक ऑफीसियल ने कहा कि इस स्टेडियम को तोड़कर फिर से बनाया जाए तब यह आधुनिक युग के स्टेडियमों की कतार में खड़ा हो सकेगा।