जाने माने खेल पत्रकार किशोर नैथानी का जाना खेल पत्रकारिता के लिए इसलिए बड़ी क्षति है, क्योंकि किशोर ने तमाम सीमितताओं के बावजूद अपने दम पर खेल पत्रकारों के बीच अपना अलग स्थान बनाया। उत्तराखंड के इस भोले भाले युवक ने लगभग चालीस साल पहले दिल्ली की टांग खींचू पत्रकारिता में कदम रखा और तमाम थपेड़े सहने के बाद अपनी अलग पहचान बनाने में सफल रहा।
दिन- रात कड़ी मेहनत के बावजूद भी किशोर इसलिए किसी बड़े दैनिक अखबार में बड़ी पहचान नहीं बना पाया, क्योंकि उसका मीडियम हिंदी था। फिर भी उसने हार नहीं मानी। वह लड़ता रहा, जूझता रहा। चौथी दुनिया, पब्लिक एशिया, हिंदुस्तान हिंदी और हरियाणा न्यूज की खेल डेस्क को बखूबी संभाला। अनेक पत्र पत्रिकाओं में उसके लेख प्रकाशित हुए।
हिंदुस्तान में हुई छंटनी के कारण उसे फिर से मैदान में उतरना पड़ा। खेल पत्रकारिता के बिगड़ते रूप स्वरूप का जैसे तैसे सामना किया लेकिन असाध्य बीमारी (न्यूरो) मांसपेशियों में खिंचाव के चलते उसे लगभग तीन साल पहले बिस्तर पकड़ना पड़ा। पत्नी रजनी और बेटे बेटियों की सेवा और देखभाल के बावजूद भी उसे बचाया नहीं जा सका।
शायद ईश्वर को यही मंजूर था। लेकिन हमने एक बेहद शांत, सौम्य, सीधा-सच्चा और हर हाल में खुश रहने वाला भाई समान मित्र खो दिया है। अफसोस इस बात का है कि हम उसके अंतिम दर्शन नहीं कर पाए।
खेल पत्रकार बंधु जानते हैं कि किशोर क्रिकेट का अच्छा खिलाड़ी था और दिल्ली खेल पत्रकार संघ की टीम का नियमित सदस्य रहा। किशोर, आप हमेशा हमारे दिल दिमाग और यादों में रहेंगे। जहां कहीं हो, हमें माफ करना।
(राजेन्द्र सजवान की फेसबुक वॉल से साभार)