-डीएसजेए ने खेल रिपोर्टिंग के क्षेत्र में केवल कौशिक, के. दत्ता और सी.एस. रामचंद्रन के योगदान को गर्व के साथ स्वीकार किया
नई दिल्ली। कहते हैं ‘आपका सम्मान बस उन शब्दों में ही नहीं है, जो आपके सामने कहे जाते हैं, बल्कि उन शब्दों में है जो आपकी अनुपस्थिति में आपके लिए के जाते हैं।’ शनिवार को अरुण जेटली स्टेडियम में उन बुजुर्ग खेल पत्रकारों की कलम को सलामी दी गई जो न जाने कितनी बार कभी फिरोज शाह कोटला के नाम से पहचाने जाने वाले इस स्टेडियम से अपनी खबरों के जरिए देश विदेश में सुर्खियां पा चुके हैं।
इस कार्यक्रम में खेल पत्रकारिता में उनके अमूल्य योगदान को सम्मानित किया गया और भारत में खेलों की कहानी को आकार देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया। दिल्ली खेल पत्रकार संघ (डीएसजेए), जो भारतीय खेल पत्रकार महासंघ (एसजेएफआई) का एक प्रतिष्ठित सहयोगी है और जिसे अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रेस संघ (एआईपीएस) द्वारा मान्यता प्राप्त है, ने शनिवार को दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) के सहयोग से इस कार्यक्रम में 80 वर्ष या उससे अधिक आयु के पत्रकारों को सम्मानित किया।
इस समारोह में प्रतिष्ठित पत्रकारों केवल कौशिक, के. दत्ता और सी.एस. रामचंद्रन को विशेष एसजेएफआई पदक और प्रशस्ति पत्र प्रदान किए गए। सम्मानित खेल पत्रकार हरपाल सिंह बेदी और किशोर नैथानी की स्मृति में दो मिनट का मौन रखा गया, जिसमें खेल जगत पर उनके अमिट प्रभाव को स्वीकार किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत डीएसजेए के अध्यक्ष अभिषेक त्रिपाठी के संक्षिप्त परिचय से हुई। उन्होंने भारत के खेलों को आकार देने में खेल पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया।
अभिषेक त्रिपाठी ने डीडीसीए के अध्यक्ष रोहन जेटली और डीडीजीए एथिक्स कमेटी के राजन मनचंदा सहित विशिष्ट अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा, ‘मैं अध्यक्ष रोहन जेटली और राजन मनचंदा को हमें यहां एकत्रित होने की अनुमति देने के लिए बधाई देता हूं। 20 साल बाद फिर से मिलने पर हमारे सम्मानित पत्रकारों ने अपनी भावनाएं प्रदर्शित कीं और उन्होंने हमारे द्वारा साथ मिलकर किए गए सार्थक काम की पुष्टि की। हम उनका सम्मान करते हैं जिनकी कहानियों ने हमें पत्रकार बनने के लिए प्रेरित किया।
रोहन जेटली ने एसजेएफआई पदक और प्रशस्ति पत्र प्रदान करने से पहले कहा, ‘खेल, क्रिकेट और पत्रकारिता का आपस में जुड़ना महत्वपूर्ण रहा है, खासकर पिछले साल हमने जिन आयोजनों को देखा है, उनमें दो विश्व कप और ओलंपिक शामिल हैं। इस महत्वपूर्ण अवसर पर हमारी बिरादरी के जाने-पहचाने चेहरों को एक साथ देखना वाकई उत्साहजनक है।’
उन्होंने खेल पेशेवरों की अगली पीढ़ी को आगे बढ़ाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए कहा, ‘मैं खेल पत्रकारिता में युवाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए और अधिक निकटता से काम करने के लिए उत्सुक हूं। हमारे शहर में अभी भी ऐसी प्रतिभाएं हैं, जिन्हें खोजा जाना बाकी है।’
अपने पिता की विरासत का सम्मान करते हुए, केवल कौशिक के बेटे ने कहा, ‘हमारे प्रतिष्ठित सदस्यों के अमूल्य योगदान का जश्न मनाने के लिए आज यहां एकत्र होना एक बड़ा सम्मान है। इस प्रतिष्ठित मंच पर उनके काम को मान्यता दी जा रही है, जो उस युग को दर्शाता है जिसमें उन्होंने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, जिसमें मेरे पिता भी शामिल हैं। वे हमारे रोल मॉडल हैं, जिनसे हमने अनुशासन और खेल पत्रकारिता के बारे में बहुत कुछ सीखा है।’
केवल कौशिक ने 1949 से 1960 तक प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के साथ अपना करियर शुरू किया, उसके बाद वे टाइम्स ग्रुप में शामिल हो गए, जहां उन्होंने 1961 से 1990 तक काम किया। टाइम्स ऑफ इंडिया में उन्होंने मॉस्को और लॉस एंजिल्स ओलंपिक और एशियाई खेलों सहित महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं को कवर किया।
उनका योगदान द स्टेट्समैन, ट्रिब्यून और इवनिंग न्यूज (हिंदुस्तान टाइम्स) सहित प्रमुख प्रकाशनों में फैला हुआ था, जहां उन्होंने दारा सिंह और किंग कांग के बीच हुए प्रसिद्ध कुश्ती मुकाबले सहित महत्वपूर्ण प्रतियोगिताओं पर रिपोर्टिंग की।
उन्होंने एक फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, दो दशकों तक दिल्ली लीग के शीर्ष डिवीजन में प्रतिस्पर्धा की और 1950 और 1960 के बीच छह लीग खिताब जीते। खेल के प्रति उनका उत्साह श्रीलंका और अफगानिस्तान की टीमों के खिलाफ मैच खेलने तक बढ़ा, जिसमें 1950 में काबुल में अफगान स्वतंत्रता समारोह में एक महत्वपूर्ण उपस्थिति भी शामिल है। इस अनुभव ने उनकी अंतर्दृष्टि को समृद्ध किया और पत्रकारिता और फुटबॉल दोनों के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाया।
केवल के बेटे ने पिता और के. दत्ता के बीच के संबंधों पर भी प्रकाश डाला, उन्होंने कहा, ‘श्री दत्ता और मेरे पिता करीबी सहयोगी थे, सेवानिवृत्ति के बाद भी उनके बीच दोस्ती बनी रही। उनका जुड़ाव 1989 से है, जब उन्होंने सिलीगुड़ी में नेहरू कप जैसे महत्वपूर्ण आयोजनों को कवर किया था। यह उनका अनूठा बंधन और अनुशासन है जिसने हमें बहुत कुछ सिखाया है।’
टाइम्स ग्रुप में अपने कार्यकाल के दौरान, के. दत्ता ने श्री कौशिक के साथ मिलकर काम किया, जिससे एक मजबूत पेशेवर रिश्ता विकसित हुआ जिसने खेल पत्रकारिता में उनके योगदान को समृद्ध किया। कार्यक्रम में उनके बेटे ने अपने पिता के बारे में कहा, ‘मेरे पिता 30 सितंबर को 93 वर्ष के हो गए। आज का दिन इसलिए भी खास है, क्योंकि इस दिन हम मां का जन्मदिन भी मना रहे हैं। हमारे परिवार के लिए यहां एक साथ होना बहुत सम्मान की बात है। पत्रकारिता के प्रति मेरे पिता के समर्पण ने हम सभी को प्रेरित किया है और हमें इस पेशे के प्रति उनकी आजीवन प्रतिबद्धता परगर्व है।’
समारोह में सी.एस. रामचंद्रन को भी सम्मानित किया गया, जिन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को 30 वर्षों से अधिक समय तक अपनी सेवाएं दी हैं। उन्होंने मुख्य रूप से फुटबॉल और हॉकी को कवर किया। अपनी असाधारण विशेषज्ञता के लिए पहचाने जाने वाले रामचंद्रन ने खेल पत्रकारिता परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी।
कार्यक्रम के दौरान श्री रामचंद्रन ने आभार व्यक्त करते हुए कहा, ‘मुझे सम्मानित करने के लिए मैं इस एसोसिएशन का बहुत आभारी हूं। यहां सभी के साथ इकट्ठा होकर मुझे बहुत खुशी हो रही है, और मैं इस प्रयास में सभी के सहयोग की अपेक्षा है। उम्मीद करता हूं कि अब यह सिलसिला आगे जारी रहेगा और मुझे उम्मीद है कि हम सभी जल्द ही खेल पत्रकारिता के लिए अपने साझा जुनून पर चर्चा करने के लिए फिर से मिलेंगे।’