-आज 14 दिसंबर को राज कपूर साहब की 100वीं जयंती पर अनमोल धरोहर पर एक नज़र
सपनों की दुनिया बड़ी हसीन होती है और इसके दिलकश नज़ारे आंखों की जमीन पर चंपई मुस्कान लिए दूर तक थिरकते चले जाते हैं। फिल्मी पर्दे पर सपनों का हसीन ताना-बाना बुनने वाला एक चितेरा जिसने हकीकत को भी उतनी ही से शिद्दत से सपनों की लड़ियों में गूंथा है, वो अज़ीम शख्शियत महान शोमैन राज कपूर ही हो सकते हैं। आज 14 दिसंबर को राज कपूर साहब की 100वीं जयंती है। इस मौके पर उनकी अनमोल धरोहरों पर एक नज़र डालने की ख़्वाहिश है।
राज साहब को महानता की किस परिधि में बांधे? वो महान एक्टर थे या डायरेक्टर थे या प्रोड्यूसर थे या एडीटर थे या संगीतकार थे। संगीतकार सुनकर आप चौंक गये होंगे। यूं तो राज साहब ने आधिकारिक रूप से ज्ञानों संगीत निर्देशन नहीं किया परंतु उनकी हर फिल्म के हर संगीत मे राज कपूर की अमिट छाप होती थी। वो संगीत के महीन पारखी थे और एक संगीतकार से अपने मन का संगीत निकलवा लेने का उनका कमाल का हुनर था।
वैसे तो उनकी महानतम फिल्मों में आवारा, श्री 420 , मेरा नाम जोकर, जागते रहो,तीसरी कसम आदि का जिक्र होता है परंतु आज मैं एक ऐसी फिल्म की चर्चा करूंगा जो फिल्म विधा के हर आयाम पर सौ फीसदी खरी उतरती है । यह फिल्म हालांकि कुछ विवादों का भी हिस्सा रही पर उससे इसकी महानता पर कोई आंच नहीं आती। यह फिल्म एक मील का पत्थर थी जो कि फिल्म इतिहास में अपना एक अलग मुकाम रखती है ।
1985 में प्रदर्शित हुई ये फिल्म “राम तेरी गंगा मैली” राज कपूर द्वारा निर्देशित अंतिम फिल्म थी और इस फिल्म ने उनकी शानदार लीगेसी को जोरदार तरीके से बरकरार रखा। कहा जाता है कि राज साहब ने इस फिल्म की कहानी को 1960 की उनकी ही फिल्म “जिस देश में गंगा बहती है” के दौरान ही गढ़ लिया था जिसका मूर्त रूप वो 25 साल बाद दे पाये।
इस फिल्म के बारे में अनेक रोचक किस्से हैं मसलन इस फिल्म की शूटिंग आरंभ हो चुकी थी तब तक इस फिल्म की हीरोइन का कोई अता पता नहीं था । इसमें दुर्गा पूजा के एक सीन की शूटिंग मुंबई के शिवाजी पार्क के पास एक दुर्गा पूजा के रियल पंडाल में की गयी थी जहां उन्होंने फिल्म की हीरोइन मंदाकिनी को देखा और स्क्रीन टेस्ट लिया। इस तरह इस फिल्म की हीरोइन की खोज पूरी हुई।
राज कपूर ने अपनी दूसरी फिल्मों की तरह इस फिल्म के भी दो क्लाइमेक्स शूट किए थे, एक सुखांत और एक दुखांत। फिल्म को एडिट करने के दौरान उन्होंने दोनों क्लाइमेक्स को लगाकर देखा और फिर सुखांत वाला सीन फाइनल किया । उन्होंने फिल्म बॉबी में भी ऐसा ही किया था ।
राज साहब ने अपने पूरे कॅरिअर में संगीतकार और गीतकार के रूप में शंकर जयकिशन एवं शैलेंद्र व हसरत जयपुरी के संग काम किया परंतु शंकर जयकिशन की जोड़ी के बाद उनका जुड़ाव लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ हुआ जो बॉबी के साथ शुरू होकर सत्यम शिवम सुंदरम एवं प्रेम रोग तक रहा । हालांकि इसी बीच एक फिल्म धरम-करम में उन्होंने राहुल देव वर्मन एवं मजरूह सुल्तानपुरी के साथ भी काम किया। इसके बाद इस कथित फिल्म में उनका सानिध्य रवींद्र जैन के साथ हुआ।
रवींद्र जैन के जुड़ने का किस्सा यह है कि एक बार रणधीर कपूर और राज कपूर दिल्ली में किसी फंक्शन में शामिल होने के लिए गए थे। वहां पर रविंद्र जैन भी उपस्थित थे। रवींद्र जैन ने उस फंक्शन में एक गाना गाया ‘एक राधा एक मीरा, दोनों ने श्याम को चाहा।’ राज साहब को ये गाना बेहद पसंद आया और उन्होंने रविंद्र जैन को अपने घर बुला लिया। घर पर ही उन्होंने रवींद्र जैन को 25000 का चेक देकर साइन भी कर लिया उस फिल्म के लिए जिसके बारे में उन्हें भी कुछ पता नहीं था।
इसके कुछ दिन के बाद राज साहब ने रवींद्र जैन को बुलाया और उन्हें लेकर अपने पुणे के फार्म हाउस में चले गये। 4 दिन के बाद जब लौटे तो उनके पास कुछ गाने संगीत के साथ तैयार हो चुके थे। राज साहब इन गानों में पूरी तरह डूब चुके थे। फिर इन गानों पर आधारित एक कहानी बुनी गयी। एक ऐसी कहानी जो हिंदी सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गयी। राज साहब ने अपने पुराने आइडिया को इस गीत संगीत और कहानी में बुन डाला जो उन्होंने जिस देश में गंगा बहती है फिल्म के दौरान सोचा था ।
इस कथा एवं पटकथा की थीम यह थी कि जिस तरह गंगा का उद्गम हिमालय के गंगोत्री से होता है, जहां पर वो निर्मल और पवित्र होती है लेकिन मैदान की तरफ जाते-जाते वो मैली होती जाती है और कलकत्ता में सागर में विलीन हो जाती है। उसी तरह गंगा (मंदाकिनी) नाम की एक मासूम और भोली लड़की जो पहाड़ों में रहती है। जैसे ही वो शहरों में आती है उसकी पवित्रता पर संकट आने लगते हैं और फिल्म के अंत में वो कलकत्ता पहुंचती है।
इस फिल्म की संक्षिप्त कहानी यह है कि गंगा की मुलाकात पहाड़ पर आये नरेंद्र (राजीव कपूर) के साथ होती है। दोनों में प्यार हो जाता है। कुछ दिन के बाद नरेंद्र अपने घर वापस लौट जाता है इस वादे के साथ कि वो गंगा को लेने जल्दी आयेगा। इधर गंगा नरेंद्र के बच्चे की मां बन जाती है पर नरेंद्र का कोई पता नहीं चलता। गंगा उसे ढ़ूंढ़ने शहर शहर भटकती है जहां उसका शारीरिक और मानसिक शोषण आरंभ हो जाता है। अत्याचार, व्यभिचार और भ्रष्टाचार के इन भयानक झंझावातों से गुजरती गंगा को कलकत्ता के एक मशहूर परिवार के एक आयोजन में नाचने गाने के लिए बुलाया जाता है जहां उसे नरेंद्र दिखता है और फिर….
इस फिल्म में कुल 9 गाने थे । इसके 7 गाने संगीतकार रवींद्र जैन ने खुद ही लिखे । एक गाना “मुझको देखोगे जहां तक” शायर अमीर क़ज़लबाश ने लिखा था वहीं फिल्म का एक हिट गाना “सुन साहिबा सुन’ प्यार की धुन” गीतकार हसरत जयपुरी का था। राज साहब जब आवारा और श्री 420 फिल्में बना रहे थे।
उन दिनों उन्होंने एक फिल्म अजंता आरके के बैनर तले शुरू की थी जो कि बाद में बन नहीं पायी। परंतु इस फिल्म के लिए हसरत जयपुरी ने ये गाना लिखा था और इसे शंकर जय किशन ने कंपोज भी कर लिया था। ये गाना 3 दशकों तक राज कपूर की यादों में बसा रहा और ‘राम तेरी गंगा मैली’ को बनाते वक्त इस गाने को फिल्म में बिल्कुल सटीक सिचुएशन पर इस्तेमाल किया गया ।
रवींद्र जैन के गीत संगीत की कारीगरी की चर्चा किये बिना इस फिल्म की बात करना नामुमकिन है। आप कोई भी गाना ले लीजिए वो फिल्म के किसी हिस्से से जुड़ा हुआ है और ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं हम सबसे जुड़ा है । मसलन-
“तुझे बुलायें ये मेरी बाहें” का ये अंतरा
“तुझे बुलायें ये मेरी बाहें
के तेरी गंगा यहीं मिलेगी
मैं तेरा जीवन, मैं तेरी क़िस्मत
के तुझको मुक्ति यहीं मिलेगी”
यद्यपि गंगा के ये जज़्बात नरेंद्र के लिए थे जिसमे उसकी नरेंद्र के प्रति आसक्ति एवं पजेसिवनेस दृष्ट्व्य थी परंतु इसमें जीवन के दर्शन को भी बखूबी उकेरा गया है। हमारी धार्मिक मान्यताओं में भी जीवन को मुक्ति अंतिम रूप से हमारे अस्तित्व के गंगा के आगोश में समा जाने पर ही मिलती है।
इसका एक गाना जो टाइटल सांग है “राम तेरी गंगा मैली हो गयी” की ये लाइनें आत्मा को चीर सी देती हैं
“धरती पर उतरी थी लेकर कितना पावन पानी
इसमें नहाये कामी क्रोधी लोभी छल अज्ञानी
लायी दूध जैसी धारा गया स्वर्ग से उतारा
इसकी बूंदों में है जीवन इसकी लहरों में किनारा
नदी और नारी रहे औरों का कलंक सर ढोते
राम तेरी गंगा मैली हो गयी पापियों के पाप धोते धोते”
हसरत का गाना “सुन साहिबा सुन” को ही सुन लीजिए। इसके एक अंतरे के बोल आंखों के सामने फिल्म की कहानी का सार लिए तैरते चले जाते हैं
“मेरा ही खूने जिगर देगा गवाही मेरी
तेरे ही हाथों लिखी शायद तबाही मेरी
दिल तुझपे वारा है जान तुझपे वारुंगी
आये के न आये तेरा रस्ता निहारूंगी”
प्रेम के क्षितिज पर अपना सर्वस्व वार देने को तैयार प्रेयसी अपनी उत्कंठा एवं समर्पण की पराकाष्ठा का बयान कर रही है।
एक और महान गाना इक राधा इक मीरा ” भी क्या कमाल का लिखा गया है । रवींद्र जैन ने मानो अपनी आत्मा को कागज पर उतार दिया हो । इसका एक अंतरा देखिए और महसूस कीजिए
“राधा ने मधुबन में ढूँढा, मीरा ने मन में पाया
राधा जिसे खो बैठी वो गोविन्द, मीरा दरस दिखाया
एक मुरली एक पायल,, एक पगली, एक घायल
अन्तर क्या दोनों की प्रीत में बोलो
अन्तर क्या दोनों की प्रीत में बोलो
एक सूरत लुभानी, एक मूरत लुभानी
एक सूरत लुभानी, एक मूरत लुभानी
इक प्रेम दीवानी, इक दरस दीवानी”
इस गाने की समृद्धता इसकी आध्यात्मिक एवं और सांस्कृतिक विरासत के रूप में निखरती है जो हमारे भारत की पौराणिक कथाओं और भक्ति की परंपराओं का भान कराती है। इस तरह इस फिल्म का हर गाना बेहद शानदार है और अनोखा है। सिर्फ गाने सुनने पर फिल्म की पूरी कहानी का भान हो जाता है ।
इस फिल्म के संगीतकार रवींद्र जैन थे परंतु कालजयी गाने शायद इसलिए भी बने कि राज साहब स्वयं इन गानों में समा गये। यह एक महान संगीतमय फिल्म है जिसमें एक फिल्म की हर विधा की उत्कृष्टता के दर्शन होते हैं।
इन गानों को लता जी और सुरेश वाडेकर ने गाया है। लता जी की आवाज की विवेचना इंसानों के लिए संभव नही है। उनकी स्वरलहरियों का रसास्वादन एक ईश्वरीय प्रसाद से कम नहीं होता है। वहीं सुरेश वाडेकर के जीवनकाल में गायकी के अनेक आयामों में यह फिल्म बहुत मायने रखती है।
इस फिल्म की सिनेमैटोग्राफी भी चुंबकीय है। राज साहब के स्थायी सिनेमैटोग्राफर राधू करमाकर आवारा’ से लेकर उनकी आखिरी फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ तक उनके साथ रहे। इस फिल्म में राधू ने क्या कमाल की सिनेमैटोग्राफी की है। इस फिल्म का शानदार संपादन राज साहब ने खुद किया है। और पूरी फिल्म का एक एक सीन कहानी का अटूट हिस्सा लगता है। इस फिल्म के भव्य सेट्स राज साहब के ग्रेट शोमैन के ओहदे को चार चांद लगाते हैं। सुरेश सावंत का कला निर्देशन बेहतरीन था।
इस फिल्म के सभी मुख्य कलाकार मंदाकिनी, राजीव कपूर, ऱजा मुराद, सईद जाफरी, सुषमा सेठ दिव्या राना कुलभूषण खरबंदा आदि की एक्टिंग बेहद शानदार थी। इन्होंने अपने अपने किरदारों को चार चांद लगा दिये
इतने नामी गिरामी लोगों की क्रियेटीविटी का ही नतीजा था कि इस फिल्म को कुल 5 फिल्म फेयर अवार्ड्स मिले थे। बेस्ट फिल्म, बेस्ट डायरेक्टर,बेस्ट म्यूजिक, बेस्ट आर्ट डायरेक्शन और बेस्ट एडीटर के लिए और कुल 10 नामांकन हुए थे ।
इतिहास के पन्नों पर जब भी एक खूबसूरत, कोमल और मासूम सी प्रेम कहानी ढ़ूंढ़ी जायेगी जिसमें प्रेम की पवित्रता एवं समर्पण के चरम का चित्रण हो तब यह फिल्म राम तेरी गंगा मैली पहली कतार में खड़ी नज़र आयेगी। इस बेहतरीन फिल्म की चर्चा के जरिये राज कपूर जैसी महानतम फिल्मी शख्सियत को याद करते हुए उनके कृतित्व को नमन।
(इस समीक्षा के लेखक मुंबई के प्रसिद्ध चिकित्सक डा.आशीष तिवारी हैं जो बांबे हास्पिटल, उमराव वोक्हार्ट हास्पिटल, जाइनोवा हास्पिटल जैसे अनेक अस्पतालों से संबद्ध रहे हैं।)