रमा मिश्रा ने यूपी क्रिकेट को दिए आरपी सिंह सीनियर, ज्ञानेन्द्र पांडेय और आशीष विंस्टन जैदी जैसे कई नायाब हीरे

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कानपुर। संजीव मिश्र
स्व. रमा मिश्रा स्मारक वेटरन चैलेंजर ट्रॉफी क्रिकेट टूर्नामेंट 12 व 13 अप्रैल को टीएसएच ग्राउंड पर होने जा रहा है। चलिए आज उस क्रिकेट की उस हस्ती और उसके परिवार के बारे में भी जान लेते हैं जिसकी याद में यह टूर्नामेंट करवाया जा रहा है।

आज की युवा क्रिकेट पीढ़ी शायद ही स्व. रमा मिश्रा के बारे में जानती हो। रमा मिश्रा यूपी रणजी टीम के पूर्व चीफ सेलेक्टर थे। वह यूपी की टीमों में बतौर मैनेजर भी रहे। हालांकि उन्होंने यूनाइटेड प्रॉविआंस की टीम से सिर्फ एक ही रणजी मैच खेला था लेकिन इससे उनकी क्रिकेट प्रतिभा को कतई नहीं आंका जा सकता। अपने डेब्यू व अंतिम मैच में भी रमा मिश्रा ने अपनी गेंदबाजी की शानदार छाप छोड़ी थी। 1954 में वाराणसी में खेले गए इस मैच में मीडियम पेसर रमा मिश्रा का पहली पारी में गेंदबाजी विश्लेषण 12-4-23-1 और दूसरी पारी में 16-4-43-3 था। यानि उस मैच में उन्होंने 66 रन देकर 4 विकेट लिए थे, जो डेब्यू मैच के लिहाज से शानदार प्रदर्शन कहा जा सकता है। दुर्भाग्य से उनको दूसरा मौका नहीं मिल सका।

क्रिकेटीय नॉलेज और प्रशासनिक क्षमता में उनका कोई सानी नहीं था। कम लोग ही जानते होंगे कि जब यूपीसीए का सचिव पद डॉ. गौर हरि सिंहानिया ने छोड़ा था तब ज्योति बाजपेई के अलावा इस पद के एक अन्य सशक्त दावेदार सर हर गोविंद प्रसाद मिश्रा के पुत्र रमा मिश्रा ही थे। रमा मिश्रा डॉ. गौर हरि सिंहानिया के क्लासमेट रहे थे, इसलिए जेके घराने से उनके ताल्लुकात काफी अच्छे थे और उनकी सीधी पहुंच गंगा कुटी तक थी।

ज्योति बाजपेई भी दक्ष और सुलझे हुए प्रशासक थे। उनको जेके ग्रुप में होने का लाभ भी मिला। इसके अलावा डॉ. गौर हरि सिंहानिया को उनकी काबिलियत पर भी काफी भरोसा था। कुछ और गणित भी ज्योति बाजपेई के पक्ष में थे, लिहाजा गौर बाबू को अपने दोस्त पर तरजीह देते हुए ज्योति बाजपेई को ही सचिव पद की जिम्मेदारी सौंपने का फैसला लेना पड़ा। इस फैसले की कुछ और वजहें भी थीं, जो बीसीसीआई के तत्कालीन अध्यक्ष जगमोहन डालमिया से जुड़ी हुई थीं।

उनके पिता के बारे में भी थोड़ा जान लीजिए। उस समय कानपुर में जिन तीन प्रतिष्ठित हस्तियों को सर की उपाधि मिली थी उनमें सर पदमपत सिंहानिया के साथ रमा मिश्रा के पिता भी थे। शहर में इस परिवार का रुतबा था। यही वजह थी कि रमा मिश्रा यूपीसीए में हमेशा सुर्खियों में रहे। सर हर गोविंद मिश्रा कानपुर में क्रिकेट के प्रमोटर्स में से एक थे। वे कानपुर जिला खेल संघ के साथ-साथ कानपुर क्रिकेट संघ के अध्यक्ष भी रहे।

महाराज कुमार विजयनगरम ने सर हर गोविंद मिश्रा को वर्ष 1951 में ग्रीन पार्क में इंडियन आमंत्रण एकादश और राष्ट्रमंडल एकादश के बीच मैच आयोजित करने की जिम्मेदारी दी। सर एचजी मिश्रा स्वागत समिति के अध्यक्ष थे जिसमें सर पदमपत सिंघानिया भी सदस्य थे। सर एचजी मिश्रा को ग्रीनपार्क में क्रिकेट केंद्र की स्थापना का श्रेय भी जाता है। वह विशेष रूप से ग्रीनपार्क में खेल के प्रमोटर्स में से एक थे।

उन्होंने सिंघानिया घराने के साथ मिलकर इस औद्योगिक शहर में खेल गतिविधियों को बढ़ावा दिया। एक तरह से वह ग्रीनपार्क में अंतर्राष्ट्रीय और टेस्ट मैचों के आयोजन की बैक बोन थे। जब उनका निधन हुआ तो कई वर्षों तक उनकी याद में एक राज्य स्तरीय प्रतियोगिता का आयोजन भी होता रहा। उनके बेटे रमा मिश्रा और भतीजे अरुण मिश्रा अच्छे क्रिकेटर थे और रणजी ट्रॉफी में उत्तर प्रदेश के लिए खेले थे। विरासत में मिले क्रिकेट को रमा मिश्रा ने कई वषार्ें तक यूपी की चयनसमिति के चीफ सेलेक्टर बनकर बखूबी आगे बढ़ाया। रमा मिश्रा जब तक क्रिकेट से जुड़े रहे कभी किसी विवाद में नहीं रहे। इसका कारण भी था, दरअसल वे क्रिकेट की राजनीति से कोई मतलब नहीं रखते थे।

रमा मिश्रा जब बतौर चीफ सेलेक्टर या मैनेजर यूपी की टीम के साथ दौरे पर होते थे तब कभी कभी उनके साथ होटल रूम शेयर करने वाले बीसीसीआई के वेटरन स्कोरर सौरभ चतुर्वेदी बताते हैं कि वे काफी क्रिकेट खेल सकते थे लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा हो नहीं सका। वह बताते हैं कि वे निहायत शरीफ थे और हमेशा टीम हित में सोचने वाले व्यक्ति थे। उनके पिता के भारतीय टीम के दिग्गज सलामी बल्लेबाज विजय मर्चेन्ट और पूर्व कप्तान लाला अमरनाथ से काफी घनिष्ठ संबंध थे। विजय मर्चेंट और लाला अमरनाथ कानपुर में पार्वती बांग्ला रोड स्थित रमा मिश्रा के निवास पर जाते भी थे।

सौरभ चतुर्वेदी बताते हैं कि यह वो दौर था जब विजय मर्चेंट डिकी रत्नाकर के साथ ग्रीनपार्क स्टेडियम में टेस्ट मैच की कमेंट्री करने आया करते थे। विजय मर्चेंट ग्रीनपार्क से रमा मिश्रा के घर तक मैच स्टार्ट होने से पहले सुबह-सुबह रोड रनिंग करते हुए पहुंच जाते थे। बताते हैं कि रमा मिश्रा गरीब खिलाड़ियों की मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। इसके अलावा टैलेंट पहचाने में भी उनको समय नहीं लगता था। दिग्गज क्रिकेटर आरपी सिंह सीनियर, ज्ञानेंद्र पांडेय और आशीष विंस्टन जैदी जैसे खिलाड़ी उन्हीं की खोज थे।

ज्ञानेंद्र पांडेय बताते हैं कि रमा मिश्रा सर की मेरे कॅरिअर में विशेष भूमिका रही है। जब वह यूपी के चीफ सेलेक्टर थे तब उन्होंने 1987 में पाकिस्तान का दौरा करने वाली जूनियर इंडिया टीम में मुझे और जैदी को शामिल करवाने में खास भूमिका निभाई थी। वे हमारे ऐसे क्रिकेट गार्जियन की तरह थे जो हमारी खेल संबंधित हर तरह की मदद करते थे।

आशीष विंस्टन जैदी बताते हैं कि रमा मिश्रा सर गरीब क्रिकेटरों की मदद करने वाले एक रॉयल इंसान थे। वे बेहद शरीफ और क्रिकेट में ही मसरूफ रहने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने ही सबसे पहले मुझे अंडर-15 में सलेक्ट किया था। जब जूनियर इंडिया की टीम पाकिस्तान खेलने गई तो मेरा, ज्ञानेंद्र पांडेय और पीयूष पांडेय का चयन उनके ही प्रयास का परिणाम था। ज्वांइन्डिस हो जाने की वजह से पीयूष लाहौर से लौट आए थे। जैदी कहते हैं कि रमा मिश्रा सर जैसे व्यक्तित्व कम ही होते हैं।

 

 

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