चार्ज संभाला : आसान नहीं होगा ग्रीनपार्क की नई आरएसओ के लिए चुनौतियों का सामना करना

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– ग्रीनपार्क में भरपूर टैलेंट के बावजूद फुटबाल का कोच ही नहीं, क्रिकेट में सिर्फ एक कोच पर तमाम बोझ

कानपुर/ संजीव मिश्र

कहते हैं किसी भी विभाग में जब किसी महिला अफसर को जिम्मेदारी सौंपी जाती है तो वहां का माहौल खुद ब खुद अनुशासित हो जाता है। कानपुर के ग्रीनपार्क में भी कुछ ऐसी ही उम्मीद लगाई जा रही है। यहां भी एक महिला अधिकारी को स्टेडियम की जिम्मेदारी सौंपी गई है। चित्रकूट मंडल का चार्ज लेने के दो दिन बाद नई क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी (आरएसओ) सुश्री भानु प्रसाद ने सोमवार को ग्रीनपार्क स्टेडियम का भी कार्य संभाल लिया। उन्होंने जिलाधिकारी जितेन्द्र प्रताप सिंह से भी मुलाकात की। दो मंडलों की जिम्मेदारी संभालने वाली भानु प्रसाद को पहली बार किसी इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम का अतिरिक्त चार्ज सौंपा गया है। जाहिर है उनके सामने अब चुनौतियां भी बड़ी ही होंगी।

बनाना होगा खेल के लिए अच्छा माहौल

पिछले आरएसओ विजय कुमार को जब इस स्टेडियम का चार्ज सौंपा गया था तब उनके पास नौकरी में काफी कम समय बचा था। नई आरएसओ के साथ भी कुछ ऐसा ही है। उनका रिटायरमेंट भी कुछ महीनों बाद है। लेकिन भानु प्रसाद को काम करने वाली ईमानदार अधिकारी के रूप में जाना जाता है, इसलिए उम्मीद है कि उनके पास जितना भी समय है वे उसी में ग्रीनपार्क के लिए कुछ बेहतर काम करके दिखाना चाहेंगी। उनको कानपुर की अतिरिक्त जिम्मेदारी भले ही मिली हो लेकिन चित्रकूट से ज्यादा समय आरएसओ को देश के सबसे पुराने स्थाई टेस्ट सेंटर ग्रीनपार्क को ही देना होगा। उनके लिए सबसे अच्छी बात यह है कि जिलाधिकारी समेत कई प्रशासनिक अफसर खेल प्रेमी हैं और खेलों के लिए ईमानदारी से कुछ करना चाहते हैं, इसलिए उनको काम का माहौल बनाने खास मुश्किल नहीं होनी चाहिए।

इन चुनौतियों से निपटना होगा

ग्रीनपार्क में फुटबाल का मैदान तो है लेकिन कोई कोच नहीं है। लम्बे समय से यहां फुटबाल कोच की तैनाती की मांग चल रही है। कानपुर में फुटबाल की अच्छी प्रतिभाएं हैं लेकिन उनको तराशने वाला कोई नहीं। एक समय इस शहर की फुटबाल टीम यूपी की ताकतवर टीमों में शुमार रखती थी। आरएसओ स्टेडियम को फुटबाल का एक काबिल कोच दे पाती हैं तो यह शहर की प्रतिभाओं के लिए किसी तोहफे से कम नहीं होगा।

क्रिकेट का स्टेडियम और सिर्फ एक कोच

दुनिया भर में ग्रीनपार्क क्रिकेट के लिए जाना जाता है। लेकिन मौजूदा समय उसके पास पर्याप्त कोच तक नहीं हैं। जिसके पास जिम्मेदारी है वही हॉस्टल संभालता है, वही कोचिंग करवाता है। इसके अलावा भी ऑफ द रिकॉर्ड उसके पास कई काम हैं। आरएसओ को मौजूदा कोच के कायार्ें की मॉनीटरिंग करके उसके कंधों पर से अतिरिक्त बोझ कम करना होगा। इसके अलावा एक एडहॉक कोच की भी खेल विभाग से मांग करनी होगी, क्योंकि अकेले एक कोच पर पूरा लोड डालने से बच्चों को ठीक से कोचिंग नहीं मिल पा रही है और हॉस्टल का स्तर गिरता जा रहा है।

ग्रीनपार्क हॉस्टल अर्श से फर्श पर पहुंच चुका

ग्रीनपार्क में एक वो दौर भी था जब क्रिकेटर आनंद शुक्ला, रोहित चतुर्वेदी, नीरू कपूर, जी आर गोयल, लक्ष्यराज त्यागी, नवीन त्यागी और पीके गुप्ता की देखरेख में क्रिकेट सीख रणजी टीम में आसानी से जगह बना लेते थे। लेकिन अच्छे कोच न मिलने से धीरे-धीरे कोचिंग का स्तर गिरता गया। हॉस्टल से अंतिम बार किस खिलाड़ी ने रणजी ट्रॉफी खेली थी, यह शायद ही किसी को याद हो। रणजी छोड़िये यूपी की एज ग्रुप टीमों में पिछले पांच साल में हॉस्टल के योगदान के बारे में ही पूछ लिया जाए तो पता चल जाएगा कि अतीत में गोपाल शर्मा, मोहम्मद कैफ, ज्ञानेन्द्र पाण्डेय जैसे इंटरनेशनल क्रिकेटर देने वाला ग्रीनपार्क हॉस्टल आज गर्त में पहुंच चुका है।

कोच और बाबू मठाधीशी में व्यस्त तो टैलेंट कहां से निकले

ग्रीनपार्क में तैनात कोच और बाबू खेल के मूल काम से इतर मुखबिरी और मठाधीशी में लगे रहते हैं। इन मंथरा करेक्टर वाले कोच और बाबू पर ग्रीनपार्क में पत्ता भी गिरे तो उसकी खबर खेल निदेशालय तक तुरंत पहुंचाने की जिम्मेदारी रहती है। कौन अधिकारी ग्रीनपार्क से कब निकला और कहां पहुंच रहा है, उसके गाड़ी में बैठने के तुरंत बाद उसका टूर वायरल हो जाता है। संभव है पहले ही दिन इन्होंने अपनी दुकानदारी बरकरार रखने के लिए नई आरएसओ की गुड बुक में शामिल होने की कसरत भी शुरू कर दी हो। सबके प्रिय ग्रीनपार्क के सीने में अभी और कई जख्म हैं लेकिन फिलहाल इस बार इतना ही।

 

 

 

 

 

 

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