बेबाक/संजीव मिश्र
कानपुर। उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (यूपीसीए) में सीजन ऑफ हो या ऑन हलचल बनी ही रहती है। एक बार फिर वह अलग कारणों से चर्चा में है। यूपीसीए के सामानान्तर एक और यूपीसीए खम ठोक खड़ा हो गया है, जिसने पहले तो संघ के ऑफीसियल लोगो पर हक कायम होने का दावा किया और फिर बीते बुधवार क्रिकेट प्लेयर एसोसिएशन और सामानान्तर यूपीसीए के पदाधिकारी ने कानपुर में रजिस्ट्रार ऑफ कम्पनीज को खिलाड़ियों की समस्याओं से संबंधित एक ज्ञापन सौंप अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाया। उनके साथ मौजूद कई खिलाड़ियों के अभिभावकों ने विभिन्न एज ग्रुप की टीमों के लिए होने वाले चयन में भेदभाव की शिकायत की।
एक महिला अभिभावक ने तो यहां तक आरोप लगाया कि चयन के लिए यूपीसीए के पदाधिकारियों और चयनकर्ताओं द्वारा 15 से 70 लाख रुपए तक की मांग की जाती है। हालांकि कौन राशि की मांग कर रहा है, इस बारे किसी का नाम नहीं बता पाईं। कहा कि इन्हीं सब कारणों से उनको मजबूरन अपने बेटे को किसी अन्य राज्य से खेलने के लिए भेजना पड़ा। बता दें कि यूपीसीए पर यह आरोप नए नहीं हैं। कई सालों से खिलाड़ियों के चयन को लेकर पैसे मांगे जाने के समय-समय पर ऑडियो भी वायरल होते रहे हैं। हालांकि आपकी ‘स्पोर्ट्स लीक’ ऐसे किसी वायरल ऑडियो की पुष्टि नहीं करती है।
क्रिकेट प्लेयर एसोसिएशन और खिलाड़ियों के अभिभावकों के आरोप एकदम खारिज भी नहीं किये जा सकते। चयन में गड़बड़ियां होती रही हैं। जरा पीछे टीमों पर नजर डालिए, कैसे प्रतिभाशाली क्रिकेटर अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद टीम के बाहर बैठा दिए जाते रहे हैं। टीमों के घोषित होने के बाद भी ऊपर के दबाव से खिलाड़ी टीम के साथ टूर पर निकल पड़ते हैं। यूपी रणजी टीम को ट्रॉफी जीते लगभग 20 वर्ष हो गए हैं, इतने लम्बे समय में एक बच्चा बड़ा होकर भारत के लिए खेल भी जाता है या पढ़ लिख कर इंजीनियर बन जाता है लेकिन यूपी की टीम अपने दूसरे रणजी खिताब के लिए तरसती रहती है। इसके पीछे क्या कारण रहे, वे ही आरोप न कि भ्रष्ट चयन प्रणाली यानि सही टैलेंट को मौका नहीं दिया जाता। ज्ञानेन्द्र पाण्डेय, मोहम्मद कैफ, पीयूष चावला, सुरेश रैना, आरपी सिंह और भुवनेश्वर कुमार जैसे टैलेंट अब नहीं निकल पाते। पिछले कुछ सालों में यूपी के बाहर से कितने खिलाड़ी खेल गए याद है न।
सामानान्तर यूपीसीए के बारे में भी जान लें। इसको यूपीसीए के एक बागी पदाधिकारी ने खड़ा किया है। वह यूपीसीए का एक ऐसा पदाधिकारी रहा है, जिसने संघ में रहते हुए उन कामों का अकेले दम विरोध किया जो उसे क्रिकेट या क्रिकेटर के हित में नहीं लगे। लिहाजा उसको पहले हाशिए पर किया गया और बाद में संघ से ही विदा कर दिया गया। लेकिन यूपीसीए के अंदर की कलह तब भी खत्म नहीं हुई। अब उसमें लॉबिंग शुरू हो गई।
मौजूद समय यूपीसीए दो खेमों में बंटा हुआ है। एक पश्चिम लॉबी है और दूसरी दिल्ली-सहारनपुर लॉबी। पश्चिम लॉबी ने पहले तो क्रिकेटरों के चयन में ऊपर से हो रही दखलंदाजी पर अंकुश लगाने की कोशिश की और फिर खुद भी उसी ढर्रे पर अपने खिलाड़ियों की विभिन्न टीमों में घुसपैठ करवाना शुरू कर दिया। कहा जाता है कि पश्चिम लॉबी के पास सामने वाले की कुंडली है, इसलिए अक्सर टीम चयन में उसकी दाल गलती रहती है। लेकिन इसका दुष्परिणाम यह निकला कि गरीब टैलेंट पर दोहरी मार पड़ने लगी। पहले कुछ प्रतिभाशाली खिलाड़ी अपने दम पर टीमों में जगह बना भी लेते थे लेकिन अब दोनों खेमे अपने-अपने खिलाड़ियों को टीम में डलवाकर उनका हक भी हजम कर जाते हैं।
सामानान्तर संघ का संघर्ष कितना लम्बा खिंच पाएगा, कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि यूपीसीए के एक शक्तिशाली सर्वेसर्वा ने लगभग 20 सालों से ऐसे बहुत विरोधों का सामना किया है और हर बार उसने अपने विरोधियों को खामोश कर दिया है। सच बात तो यह है कि संघ चाहे दो बनें या दस, यहां का मुख्य मदारी एक हाथ में डमरू और दूसरे हाथ में दो तीन केले हमेशा रखता है। वह जब तक चाहता है बंदरों को नचाता है और जब कोई बंदर ज्यादा आंखें दिखाता है तो उसे एक केला पकड़ाकर शांत कर देता है। फिर जब चाहता है उसका खेल तमाम कर डंडा कंधे पर रखकर चल देता है। कहने का मतलब यह है कि जब तक केला खाने वाले लालची बंदर रहेंगे मदारी का खेल भी जारी रहेगा। लाख टके का सवाल यह है कि नया संघर्ष कहीं फिर बारिश के बुलबुले जैसा तो नहीं, यानि यह कितना लम्बा खिंचेगा कहना जरा मुश्किल है।