-हिमांचल प्रदेश की कुसुम ठाकुर ने डॉक्टरों को गलत साबित किया
-ऑल इंडिया ओपन एथलेटिक्स : 200 मीटर की दौड़ में जीता स्वर्ण
शिमला। यदि जीने का जज्बा ही छोड़ दिया तो जिंदगी भी आपका साथ नहीं देगी। हिमाचल प्रदेश की कुसुम ठाकुर की कहानी किसी साहसिक पर्वतारोही से कम नहीं है। लगभग ढाई साल पहले की ही बात है। दोनों फेफड़ों में पानी भर जाने के कारण डॉक्टरों ने कुसुम को भविष्य में कभी दौड़ने की उम्मीद न पालने को कहा था। लेकिन खिलाड़ी कहां घुटने टेकते को तैयार होते हैं। फिर चाहे वह रिषभ पंत हों या मंडी में रहकर पढाई करने वाली कुसुम ठाकुर। कुसुम ने चौथी ऑल इंडिया ओपन एथलेटिक मीट में 200 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर डॉक्टरों को गलत साबित कर दिया है।
पटना में आयोजित इस प्रतियोगिता में कुसुम ने अपनी दौड़ सिर्फ 24.19 सेकंड में पूरी करते हुए हिमाचल प्रदेश के लिए पहला महिला वर्ग का 200 मीटर स्वर्ण पदक जीता। महाराष्ट्र की सुधेशना हनमंत शिवांकर ने 24.24 सेकंड के साथ रजत, जबकि हिमाचल प्रदेश की ही समृति जम्वाल ने 24.49 सेकंड में कांस्य पदक अपने नाम किया।
कुसुम वल्लभ राजकीय महावद्यिालय, मंडी में कला संकाय की तृतीय वर्ष की छात्रा कुसुम ठाकुर की यह उपलब्धि किसी चमत्कार से कम नहीं है। जब वह मीमार पड़ीं और डॉक्टरों ने ट्रैक को अलविदा कहने का सुझाव दिया तो उन्होंने उनकी सलाह को एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दिया और इस असंभव स्थिति को चुनौती मानकर खुद को साबित करने की ठान ली।
उनके साहस और संघर्ष ने उन्हें उस मुकाम पर पहुंचा ही दिया है, जहां वह राष्ट्रीय स्तर पर चमक रही हैं।
कुसुम ठाकुर इससे पहले भी कई बार राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम सफलताएं हासिल कर चुकी हैं। उन्होंने हिमाचल प्रदेश में इंटर कॉलेज एथलेटिक्स चौंपियनशिप में नए कीर्तिमान स्थापित किए थे और इसके बाद ऑल इंडिया युनिवर्सिटी व खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में भी पदक हासिल किए थे।
वह अपनी इस सफलता का श्रेय अपने भाई हरीश चन्द्र, माता-पिता, कोच अंकित चंबयाल और गुरुजनों को देती हैं। मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखने वाली कुसुम का सपना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधत्वि करना है। उनके जोश और साहस को देखकर उनके सपने के पूरा होने के रास्ते में कोई बाधा नजर नहीं आ रही।