कानपुर। यह शहर यूपीसीए का मुख्यालय है। दुनियां का प्राचीनतम टेस्ट सेंटर ग्रीनपार्क भी यहां है, इसलिए इस शहर के लोगों की रग-रग में क्रिकेट रचा बसा है। यूपी के हर छोटे-बड़े मैच की यहां गली नुक्कड़ों और चौपालों पर चर्चा सुनी जा सकती है। हार गए तो जी भर-भर गालियां और अच्छे प्रदर्शन पर खिलाड़ियों को उतना ही दुलार देने में इस मर्द शहर का कोई सानी नहीं। दरअसल यही इस शहर का मिजाज है।
शनिवार को केरल से ईिनंग डिफीट खाने वाली यूपी का मौजूदा रणजी सेशन भी खिलाड़ियों और क्रिकेट प्रेमियों के बीच चर्चा का विषय बना रहा। शहर की एक मशहूर चाय की दुकान पर सड़क पार दो लोगों की क्रिकेट पर चर्चा सुनी तो हम भी आदतन लाइव चर्चा सुनने खड़े हो गए। एक अधपके बाल वाले वेटरन क्रिकेटर बोले ‘अरे यार ये…(गाली) अपनी…(एक और गंदी गाली) रहे हैं क्या? अब यूपी को तीन मैच और खेलने हैं, जबकि उसके चार मैचों से मात्र पांच ही अंक हैं। सामने वाला चाय की चुस्की लेते हुए ‘हूं’ कर वेटरन खिलाड़ी को देखते हुए फिर तेजी से चाय सुड़कने लगा।
उसने धीरे से और सुलगा दी। बोला, हां बे, वो मोहसिनवा भी तो आजकल चरस बोए हुए है। सीजन खत्म होने के बाद क्या एक बार फिर उंगली नहीं उठेगी। वेटरन क्रिकेटर को साथ मिला तो वह और जोश में आ गया। लेकिन चाय अब अंतिम चुस्की तक पहुंच चुकी थी। बोला, क्या एक चाय और लड़ा ली जाए गुरु? अब अंधा क्या चाहे दो आंखें। सामने वाला फोकटिया चाय का तलबगार लग रहा था, जो जानता था कि कैसे इस दुकान की मलाई मार महंगी चाय मुफ्त में उड़ाई जा सकती है। खैर, वेटरन ने दो कुल्हड़ चाय और भेजने को बांग लगा दी।
यूपी क्रिकेट की मइय्या-दैय्या करने का सिलसिला फिर शुरू हो गया। वेटरन क्रिकेटर बोला अब बताओ यार, यूपी में भरपूर टैलेंट होने के बावजूद क्यों एक बुजुर्ग खिलाड़ी को बुला लिया गया, क्या फायदा हुआ? घर में टैलेंट भरा पड़ा है फिर क्यों बाहर के खिलाड़ियों को टीम में शामिल किया जाता है? जिस लाखों के कोच का रिकॉर्ड अच्छा नहीं है और खिलाड़ियों से उसकी ट्यूनिंग ठीक नहीं है उसे क्यों ढोया जा रहा है? क्यों नहीं निकाल कर बाहर कर देते हैं ऐसे बाहरी खिलाड़ियों और कोच को? खरी बातों की लत अफीम जैसी होती है, इसलिए हमें भी दोनों की बातों का मजा आने लगा था। सो हमने भी एक चाय को आवाज लगा दी।
वेटरन क्रिकेटर बोला, गुरु क्या तुम हमें पिछले पांच साल में यूपी टीम में कितने कप्तान रहे बता सकते हो? फोकटिया चाय पिअक्कड़ ने कुल्हड़ में होंठ सटाते हुए बेवकूफों की तरह न में गरदन हिला दी। बात का सिलसिला आगे बढ़ा तो महिला क्रिकेटरों पर आ गया। बोला, पता है अपनी एक महिला टीम भी तो औंधे मुंह गिर गई। अरे यार अब क्या कहें, लड़कियों की टीम भी तो खराब प्रदर्शन में पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। पूरे कुएं में ही भांग मिली है तो कोई क्या कर सकता है। एक ही शहर की कई खिलाड़ी ठूंस दोगे तो वह जिले की टीम ही तो बन जाएगी ना।
अरे! तो भैय्या तो चयनकर्ता क्या कर रही थीं? अरे कैसी बातें करते हो यार, अब उनसे कौन बोलेगा, जिसके जो मन में आता है उसे रख लेती हैं। वेटरन क्रिकेटर कुछ और भड़ास निकालना चाहता था लेकिन दूसरी चाय भी खत्म हो चुकी थी, इसलिए सामने वाले का इंट्रेस्ट भी खत्म हो गया। बोला या कल मिलते हैं, बउआ को ट्यूशन छोड़ने जाना है। हमारी चाय भी खात्मे पर थी सो हम भी यह सोचते हुए चल दिए कि क्रिकेट का असली पोस्टमार्टम तो ऐसी चाय चौपाल पर ही होता है।